Dainik Jagran 2020-10-28

ग्लोबल हंगर इंडेक्स: कितना झूठ, कितना सच

हाल ही में कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्टहंगरहिल्फे द्वारा प्रकाशित "ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020" रिपोर्ट जारी हुई। इसके अनुसार, भारत में भुखमरी की स्थिति गंभीर है और उसका स्थान 107 देशों की सूची में 94वां है। पिछले वर्ष की तुलना में इसमें कुछ सुधार हुआ है। बावजूद इसके आर्थिक रूप से कमजोर पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान से अभी भारत पीछे है। जैसे ही यह विदेशी रिपोर्ट सार्वजनिक हुई, वैसे ही भारतीय मीडिया- विशेषकर अंग्रेजी मीडिया ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित/प्रसारित किया। कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने भी इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। विदेशी गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्टहंगरहिल्फे द्वारा प्रकाशित यह 15वीं "ग्लोबल हंगर इंडेक्स" रिपोर्ट है। क्या मीडिया ने इस रिपोर्ट और इसके रचनाकार संगठनों की प्रमाणिकता को जांचा या खोजबीन की?
Punjab Kesari 2020-10-28

लव-जिहाद (TAQIYA) को बढ़ावा देने का विरोध तो होगा

आभूषण निर्माता तनिष्क के विज्ञापन से जनित विवाद विमर्श में है। अंतर-मजहबी विवाह में गोद-भराई, जिसमें लड़की हिंदू और लड़के का परिवार मुस्लिम दिखाया गया था- उसका चित्रण करते हुए विज्ञापन को "एकात्वम" की संज्ञा दी गई। जैसे ही यह विज्ञापन प्रसारित हुआ, कई राष्ट्रवादी संगठनों ने इसे "लव-जिहाद" को बढ़ावा देने वाला बताते हुए विरोध करना प्रारंभ दिया। इसके बाद तनिष्क ने जनभावनाओं को आहत करने के लिए माफी मांगी और अपने विवादित विज्ञापन को वापस ले लिया। जैसे शाहबानो, सैटेनिक वर्सेस, लज्जा प्रकरण के बाद एक समुदाय विशेष की भावनाओं और मान्यताओं का सेकुलरवाद के नाम पर सम्मान किया गया था, वैसे ही तनिष्क घटनाक्रम में भी होना चाहिए था। किंतु ऐसा नहीं हुआ। कारण स्वघोषित सेकुलरिस्ट, स्वयंभू उदारवादी और वामपंथी द्वारा स्थापित उस विकृत नैरेटिव में छिपा है- जिसमें मुसलमानों को इस्लाम के नाम पर एकजुट करने, तो हिंदुओं को जातियों के आधार पर बांटने का एजेंडा है।
Punjab Kesari 2020-10-21

क्या पेरिस की बर्बर घटना में छिपा है इस्लाम का सच?

विगत कुछ दिनों से "इस्लाम का संकट" वैश्विक विमर्श में है। इस चर्चा को 16 अक्टूबर (शुक्रवार) की उस घटना के बाद तब और गति मिल गई, जब फ्रांस की राजधानी पेरिस में 18 वर्षीय मुस्लिम ने 47 वर्षीय शिक्षक की गर्दन काटकर हत्या कर दी। फ्रांसीसी सरकार ने इसे इस्लामी आतंकवाद की संज्ञा दी है। मृतक सैम्युएल पैटी इतिहास विषय का शिक्षक था और हत्यारा मॉस्को में जन्मा चेचेन्या का मुस्लिम शरणार्थी। पैटी का दोष केवल इतना था कि उसने अपनी कक्षा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में पढ़ाते हुए पैगंबर मोहम्मद साहब का एक कार्टून दिखाया था। जिहादियों द्वारा फतवा जारी होने के कुछ समय पश्चात उसी शाम स्कूल के निकट हथियारों से लैस इस्लामी आतंकी पहुंचा और उसने "अल्लाह-हू-अकबर" का नारा लगाते हुए धारदार चाकू से घर लौट रहे सैम्युएल का गला निर्ममता से काट दिया। जवाबी कार्रवाई में आतंकी पुलिस के हाथों मारा गया। पुलिस ने आरोपी की पूरी पहचान उजागर नहीं की है। उसका मानना है कि हमलावर की बेटी उसी स्कूल में पढ़ती थी। इस मामले के बाद फ्रांस में इस्लाटमिक कट्टरपंथियों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है, दर्जनों स्थानों पर जांच एजेंसियों ने छापेमारी की है।
Amar Ujala 2020-10-17

गुलाम मानसिकता के प्रतीक हैं फारूक अब्दुल्ला

भारत क्यों 800 वर्षों तक गुलाम रहा?- इसका उत्तर, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के हालिया वक्तव्य में मिल जाता है। एक टीवी चैनल द्वारा पूछे चीन संबंधी सवाल पर अब्दुल्ला कहते हैं, "अल्लाह करे कि उनके जोर से हमारे लोगों को मदद मिले और धारा 370-35ए बहाल हो।" फारूक का यह वक्तव्य ऐसे समय पर आया है, जब सीमा पर भारत-चीन युद्ध के मुहाने पर खड़े है। यह ना तो कोई पहली घटना है और ना ही फारूक ऐसा विचार रखने वाले पहले व्यक्ति। वास्तव में, फारूक उन भारतीयों में से एक है, जो "बौद्धिक दासता" रूपी रूग्ण रोग से ग्रस्त है। यह पहली बार नहीं है, जब भारत में "व्यक्तिगत हिसाब", "महत्वकांशा" और "मजहबी जुनून" पूरा करने और सत्ता पाने की उत्कंठा में जन्म से "भारतीय" अपने देश के लिए गद्दार या विदेशी शक्तियों के दलाल के रूप में सामने आए हो।
Amar Ujala 2020-10-04

भारत में एनजीओ का काला सच

गत सप्ताह विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफ.सी.आर.ए.) संशोधन विधेयक संसद से पारित हो गया। इस कदम का जहां एक बड़ा वर्ग स्वागत कर रहा है, तो अन्य- जिनका अपना निहित स्वार्थ भी है, वे इसे घातक और लोकतंत्र विरोधी बता रहे है। यह सर्विदित है कि देश के अधिकांश स्वयंसेवी संस्थाओं (एनजीओ) को सर्वाधिक विदेशी चंदा ईसाई धर्मार्थ संगठनों से प्राप्त होता है। एक आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2016-2019 के बीच एफसीआरए पंजीकृत एनजीओ को 58,000 करोड़ का विदेशी अनुदान प्राप्त हुआ था। यक्ष प्रश्न है कि जो स्वयंसेवी संगठन, विदेशों से "चंदा" लेते है- क्या उनका उद्देश्य सेवा करना होता है या कुछ और? निर्विवाद रूप से देश में कई ऐसे एनजीओ हैं, जो सीमित संसाधनों के बावजूद देश के विकास में महती भूमिका निभा रहे हैं। किंतु कई ऐसे भी है- जो स्वयंसेवी संगठन के भेष में और सामाजिक न्याय, गरीबी, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, मजहबी सहिष्णुता, पर्यावरण, मानवाधिकार और पशु-अधिकारों की रक्षा के नाम पर न केवल भारत विरोधी, अपितु यहां की मूल सनातन संस्कृति और बहुलतावादी परंपराओं पर दशकों से आघात पहुंचा रहे हैं। भारतीय खुफिया विभाग अपनी एक रिपोर्ट में कह चुका है कि विदेशी वित्तपोषित एनजीओ की विकास विरोधी गतिविधियों से देश की अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से 2-3% तक प्रभावित होती है।
Punjab Kesari 2020-09-23

भारत, चीन से कैसे निपटे?

भारत आखिर चीन से कैसे निपटे? एक तरीका तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 13 पूर्ववर्तियों का अनुसरण करते रहे, जिन नीतियों का परिणाम है कि आज भी 38 हजार वर्ग कि.मी. भारतीय भूखंड पर चीनी कब्जा है। चीन से व्यापार में प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपयों का व्यापारिक घाटा हो रहा है। सीमा पर भारतीय सैनिक कभी शत्रुओं की गोली, तो कभी प्राकृतिक आपदा का शिकार हो रहे है। "काफिर" भारत के खिलाफ पाकिस्तान के जिहाद को चीन का प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन प्राप्त है। नेपाल- जिसके भारत से सांस्कृतिक-पारिवारिक संबंध रहे है, वह चीनी हाथों में खेलकर यदाकदा भारत को गीदड़-भभकी देने की कोशिश करता रहता है। यदि भारत उन्हीं नीतियों पर चलता रहा, तो हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाएगा। भारत ने सबसे पहली गलती तब की, जब 1950 में चीन ने तिब्बत को अपना आहार बना लिया और हम चुपचाप देखते रहे। एक तरफ भारत ने वर्ष 1959 के बाद तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो और कालांतर में अन्य तिब्बतियों को शरण दी, तो दूसरी ओर तिब्बत पर चीन का दावा स्वीकार कर लिया। सच तो यह कि 1950 से पहले तिब्बत के, भारत और चीन के साथ बराबर के संबंध थे। चीन से उसकी खटपट पहले से होती रही है। स्मरण रहे, तेरहवें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो 1910-11 में भागकर भारत आ गए थे। 1913-14 में शिमला समझौता होने से पहले तक वे दो वर्षों के लिए सिक्किम और दार्जिलिंग में शरण लिए हुए थे। किंतु हमनें स्वतंत्रता मिलने के बाद वामपंथी चीनी तानाशाह माओ से-तुंग की विस्तारवादी नीति के समक्ष समर्पण कर दिया।