ए.एम.यू.- नेहरू आज भी प्रासंगिक
उत्तरप्रदेश स्थित अलीगढ़ बीते दिनों सुर्खियों में रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 सितंबर को यहां 92 एकड़ भूभाग में बन रहे राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय का शिलान्यास करने पहुंचे थे। यह क्षेत्र ताले और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (ए.एम.यू.) के कारण पहले से प्रसिद्ध है। वास्तव में, इस संस्थान का अब भी जीवंत होना- सूचक है कि भारत कितना सहिष्णु है। सभ्य राष्ट्र उच्च शिक्षा हेतु विश्वविद्यालयों का निर्माण करते है। किंतु ए.एम.यू. विश्व का एकमात्र अपवाद है, जिसने नए देश- पाकिस्तान के जन्म की रूपरेखा तैयार की। भारत का रक्तरंजित विभाजन करवाने में महती भूमिका निभाने के बाद भी, यह संस्थान अपनी अपरिवर्तित सांप्रदायिक मनोवृति सहित केंद्रीय अनुदान की अनुकंपा पर देश में अब भी विद्यमान है।
वर्तमान ए.एम.यू. की जड़े लगभग डेढ़ शताब्दी पुरानी है। 1875 तक यह एक स्कूल और 1877 में मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज के रूप में विख्यात था। ब्रितानी एजेंट सर सैयद अहमद खां द्वारा स्थापित इस शैक्षणिक संस्था का मूल उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजों का विश्वासी बनाना और उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन से काटना था। इसका खाका सैयद ने "असबाब-ए-बग़ावत-ए-हिंद" लिखकर तैयार किया, जिसमें उन्होंने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि 1857 की क्रांति में मुसलमानों की कोई भूमिका नहीं थी, जोकि सत्य से परे है। इस संघर्ष में हिंदुओं और मुसलमानों ने कंधे से कंधा मिलकर अंग्रेजों को चुनौती दी थी।
सैयद ने मजहबी कारणों से अधिकांश मुस्लिमों को राष्ट्रीय आंदोलन से दूर कर दिया, जिसका सूत्रपात उन्होंने मेरठ में 16 मार्च 1888 को भाषण देकर किया। यहां सैयद ने "दो राष्ट्र सिद्धांत" का औपचारिक शिलान्यास करते हुए कहा, "...मान लीजिए, अंग्रेज अपनी सेना, तोपें, हथियार और बाकी सब लेकर देश छोड़कर चले गए, तो देश का शासक कौन होगा? उस स्थिति में क्या यह संभव है कि हिंदू और मुस्लिम कौमें एक ही सिंहासन पर बैठें? निश्चित ही नहीं... तब हमारे पठान बंधू टिड्डों की झुंड की तरह पर्वतों और पहाड़ों से निकलकर बाहर आएंगे और बंगाल तक खून की नदियां बहा देंगे... आपको पता है शासन कैसे किया जाता है, आपने तो 700 साल भारत पर राज किया है...।"
यदि मुगल राष्ट्रनिर्माता है, तो अंग्रेज क्यों नहीं?
हिंदी फिल्म जगत के प्रसिद्ध गीतकार मनोज मुंतशिर और फिल्मकार कबीर खान सार्वजनिक विमर्श में है। जहां कबीर ने मुगलों को भारत का वास्तविक राष्ट्रनिर्माता बताया है, तो मनोज ने उन्हें लुटेरा, आततायी, मंदिर-विध्वंसक और हिंदुओं-सिखों पर अत्याचार करने वाला। जैसे ही लगभग एक ही समय कबीर और मनोज के विचार सामने आए, तब स्वाभाविक रूप से सोशल मीडिया पर हजारों लोग पक्ष-विपक्ष में उतर आए। मैं व्यक्तिगत रूप से इन दोनों हस्तियों से परिचित नहीं हूं। किंतु कबीर का प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन और मनोज का मुखर विरोध करने वाले समूह और उनकी मानसिकता से अवगत हूं।
यह कोई संयोग नहीं कि इन लोगों में अधिकांश वही चेहरे है, जो श्रीराम को काल्पनिक बता चुके है- अयोध्या मामले में रामलला के पक्ष में निर्णय आने पर सर्वोच्च न्यायालय को कटघरे में खड़ा कर चुके है- धारा 370-35ए के संवैधानिक क्षरण सहित नागरिक संशोधन अधिनियम को मुस्लिम विरोधी बता कर चुके है और बीते सात वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वैचारिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत घृणा के कारण शेष विश्व में भारत की शाश्वत सहिष्णु छवि को कलंकित कर रहे है।
मनोज मुंतशिर का "हम किसके वशंज" नामक वीडियो वायरल हुआ। उसमें वे कहते हैं, "शासक के रूप में मुगलों का कार्यकाल इतिहास में सबसे अच्छा कैसे होगा, जब हजारों हिंदुओं को इस्लाम में परिवर्तित नहीं करने के लिए मार दिया गया था। अगर उनका कार्यकाल सबसे अच्छा था, तो रामराज्य क्या था? हमारे घर तक आने वाली सड़कों के नाम भी किसी अकबर, हुमायूं, जहांगीर जैसे ग्लोरिफाइड डकैत के नाम पर रख दिए गए। हम इस हद तक ब्रेनवाश्ड हो गए कि अचानक हमारे प्री-प्राइमरी टेक्स्ट बुक में ग से गणेश हटाकर ग से गधा लिख दिया गया और हमारे माथे पर बल तक नहीं पड़ा..."