Punjab Kesari 2021-04-07

जम्मू-कश्मीर में परिवर्तन का दौर

क्या जम्मू-कश्मीर अपनी मूल सांस्कृतिक विरासत की पुनर्स्थापना की ओर अग्रसर है? इसका उत्तर जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा लिए एक निर्णय में मिल जाता है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता वाली प्रशासनिक परिषद ने एक अप्रैल को तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) को जम्मू संभाग में 25 हेक्टेयर भूखंड पर तिरुपति बालाजी मंदिर की भांति देवालय बनाने की स्वीकृति दी है। इस संबंध में टीटीडी को 40 वर्षों के लिए पट्टे पर जमीन मिलेगी, जहां वेद-पाठशाला, आध्यात्मिक/ध्यान केंद्र आदि का निर्माण किया जाएगा। धारा 370-35ए के संवैधानिक क्षरण और जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के बाद यह संभवत: पहला ऐसा निर्णय है, जिसमें इस भूखंड की मूल पहचान को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से किसी हिंदू सनातनी धर्मार्थ संगठन को भूमि दी गई है। वर्ष 1932 में तत्कालीन तमिलनाडु सरकार ने तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम मंडल का गठन किया था। करोड़ों हिंदुओं की मान्यता और उनका विश्वास है कि आंध्रप्रदेश स्थित तिरुमाला की पहाड़ियों में भगवान विष्णु, तिरुपति बालाजी के रूप में अपनी पत्नी पद्मावति के साथ विराजमान हैं। यहां हर वर्ष श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। इस मंदिर की गणना देश के कुछ सबसे धनी मंदिरों में होती है।
Punjab Kesari 2021-01-27

राम मंदिर पुनर्निर्माण- भारतीय सांस्कृतिक पहचान की पुनर्स्थापना

रामजन्मभूमि अयोध्या में बनने जा रहे मंदिर सहित 70 एकड़ परिसर की भव्यता पर 1,100 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह निर्माण कार्य 3 वर्ष में पूरा होने का अनुमान है। प्रस्तावित राम मंदिर के वैभव की झलक गणतंत्र दिवस पर दिल्ली स्थित राजपथ पर निकली महर्षि वाल्मीकि और राम मंदिर की प्रतिकृति से सुसज्जित उत्तरप्रदेश की झांकी में मिल जाती है। देश-विदेश में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के हजारों मंदिर है। ऐसे में अयोध्या स्थित निर्माणाधीन मंदिर क्या एक अन्य राम मंदिर की भांति होगा- जिसकी विशेषता केवल उसकी सुदंरता, भव्यता और विशालता तक सीमित होगी या फिर इसका महत्व कहीं अधिक व्यापक है? करोड़ों हिंदुओं की आस्था है कि श्रीराम, भगवान विष्णु के एक अवतार है। क्या राम को केवल इस परिचय की परिधि से बांधा जा सकता है? वास्तव में, श्रीराम ही भारतीय सनातन संस्कृति की आत्मा है, जिनका जीवन इस भूखंड में बसे करोड़ों लोगों के प्रेरणास्रोत है। वे अनादिकालीन भारतीय जीवनमूल्य, परंपराओं और कर्तव्यबोध का शाश्वत प्रतीक हैं। इसलिए गांधीजी के मुख पर श्रीराम का नाम रहा, तो उन्होंने आदर्श भारतीय समाज को रामराज्य में देखा। यह विडंबना ही है कि स्वतंत्रता के बाद जीवन के अंतिम क्षणों में राम का नाम (हे राम) लेने वाले बापू की दिल्ली स्थित राजघाट समाधि तो बीसियों एकड़ में फैली है, किंतु 5 अगस्त 2020 से पहले स्वयं रामलला अपने जन्मस्थल पर अस्थायी तिरपाल और तंबू में विराजमान रहे। यही नहीं, 2007 में स्वघोषित गांधीवादियों ने अदालत में श्रीराम को काल्पनिक बता दिया। यह विडंबना ही है कि जहां देश का एक वर्ग (वामपंथी-जिहादी कुनबा सहित) भारतीय संस्कृति और उसके प्रतीकों से घृणा करता है, वही ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो ने भारत द्वारा भेजी स्वदेशी कोविड वैक्सीन पर "संजीवनी बूटी ले जाते भगवान हनुमान" की तस्वीर ट्वीट करते हुए धन्यवाद किया है। बोल्सोनारो का यह संकेत भारतीय सांस्कृतिक प्रतीकों की वैश्विक स्वीकार्यता को रेखांकित करता है।





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