दानिश सिद्दीकी की हत्या में छिपा संदेश
हाल ही में भारतीय छायाचित्र-पत्रकार दानिश सिद्दीकी की अफगानिस्तान में तालिबान ने हत्या कर दी। यह पूरा घटनाक्रम बहुत दुखद है। दानिश इस इस्लामी देश के पुन: तालिबानीकरण को अपने कैमरे में कैद करने अफगानिस्तान में थे। कितनी बड़ी विडंबना है कि जिस दानिश ने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से हिंदू समाज और भारत को विश्वभर में बदनाम करने वाला विमर्श चलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, उनकी नृशंस हत्या इस्लाम के नाम पर जिहाद करने वाले दानवों के हाथों हुई। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले मुस्लिम समाज में व्याप्त विसंगति और विरोधाभास को रेखांकित किया है।
एक भारतीय न्यूज़ चैनल से बात करते अफगान सैन्य अधिकारी ने बताया कि तालिबानियों ने 16 जुलाई को दानिश को गोली मारी, जिससे उसकी मौत हो गई। जैसे ही उन्हें पता चला कि उसकी राष्ट्रीय पहचान "भारतीय" हैं, तब उन्होंने शव पर वाहन चढ़ाकर उसका सिर कुचल दिया। विडंबना देखिए कि दानिश जिस भारत और उसकी मूल वैदिक संस्कृति को दुनियाभर में गरियाता था, वह उससे जनित बहुलतावादी "इको-सिस्टम" में पूर्णत: सुरक्षित और स्वतंत्र था। किंतु जिस मजहब का दानिश अनुयायी था, उसके पैरोकारों ने इस्लाम के नाम पर क्रूरता के साथ उसकी हत्या कर दी।
दानिश की निर्मम हत्या के बाद उसकी जीवनी, विचार और उसके पेशेवर काम पर चर्चा होना स्वाभाविक था। दानिश ने भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान हिंदुओं की जलती चिताओं की तस्वीरें खींची थी, जिसे लेकर देशविरोधी शक्तियों (अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान सहित) ने वैश्विक अभियान चलाया और विपक्षी दल मोदी-विरोध के नाम पर दुनियाभर में देश की छवि पर कालिख पोतने में सहभागी बने। जब यह सब सोशल मीडिया और मीडिया पर पुन: वायरल हुआ, तब तालिबान ने एकाएक दानिश की हत्या पर खेद व्यक्त कर दिया। ऐसा करके तालिबान ने जो संदेश दुनिया को दिया है- वह उतना ही स्पष्ट है, जितना तालिबानियों का दानिश की मौत पर पछतावा है।
घोर घृणाग्रस्त और अंधा-लालच या फिर इन दोनों दुर्गुणों से युक्त व्यक्ति या समूह- समाज को कितने भयंकर संकट में डाल सकता है, इसकी बानगी हमें कोविड-19 के दौर में देखने को मिल रही है। इस विकृत कड़ी में नवीनतम प्रयास कांग्रेस में सोशल मीडिया और डिजिटल संचार के राष्ट्रीय समन्वयक गौरव पांधी ने हाल ही में किया है। उन्होंने कोवैक्सीन में "गाय के नवजात बछड़े का सीरम" होने का दावा किया था। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि पांधी या फिर उनकी पार्टी की गोवंश के प्रति कोई श्रद्धा है। यहां गौरव का उद्देश्य केवल लोगों को वैक्सीन के प्रति पुन: हतोत्साहित करना है। स्मरण रहे कि 2017 में केरल की सड़क पर कांग्रेस के नेताओं ने दिनदहाड़े सरेआम गाय के बछड़े की हत्या और उसके मांस का सेवन करके "सेकुलरवाद" में अपनी आस्था का प्रमाण दिया था।
वैश्विक महामारी के खिलाफ भारत विगत वर्ष से संघर्षरत है। किंतु विशुद्ध राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से घृणा करने वालों का कुनबा- इस युद्ध में भारत का पक्ष कमजोर कर रहा है। इस षड़यंत्र के एक छोर पर जहां सांप्रदायिक मानस से प्रेरित उत्तरप्रदेश की कनिष्ठ स्वास्थ्य कर्मचारी निहा खान है, तो दूसरी ओर प्रभावशाली स्थानों पर आसीन स्वघोषित सेकुलरवादियों की जमात- दुष्प्रचार और कुतर्क के आधार पर कोविड विषाणु के साथ खड़ी है। इस कुनबे को "कोरोना बंधु" की संज्ञा से भी परिभाषित किया जा सकता है।