Christian-Tribal Conflict Has Old Fault Lines
Even as the vexed issue of conversions, from one faith to another, is being argued in the Indian law courts, it continues to leave behind a bloody trail, as Mahatma Gandhi had warned on numerous occasions.
The new year started on a violent note in Narayanpur in Chhattisgarh. On January 2, unrest simmering for months in the area, imploded. Local tribals and recent converts to Christianity were arraigned against each other. Each side is accusing the other, of orchestrating violence.
The conflict is not a sudden development. In a note in July 2021, the Sukma superintendent of police Sunil Sharma first flagged the possibility of conflict. “Christian missionaries and converted tribes are reaching the interiors of the district and are luring local tribals. We cannot deny the possibility of conflict between converted tribals and locals.” The expression “luring local tribals”, neatly sums up the problem.
Who threw the first stone or provoked violence in Narayanpur– tribals or converts– is for the police to investigate and law Courts to decide. But the reasons leading to this ugly situation are all too familiar. The tribals (Janjatis as the constitution defines them) have a unique life style, distinct culture, and indigenous modes of worship- shaped by their continued engagement with nature.
जनसंख्या नियंत्रण पर विकृत चर्चा का कारण
गत 28 जुलाई को अमर उजाला के दिल्ली संस्करण के मुख्य पृष्ठ पर केरल संबंधित एक समाचार को देखा। शीर्षक था- "पांच से ज्यादा बच्चे पैदा किए तो चर्च देगा पैसा।" ऐसा विचार तब सामने आया है, जब देश में कई समस्याओं के मुख्य कारणों में से एक अनियंत्रित जनसंख्या (138 करोड़) पर नकेल कसने हेतु मुखर चर्चा हो रही है। यह पहली बार नहीं है कि जब जनसंख्या वृद्धि पर नकेल कसने संबंधित प्रयासों के प्रतिकूल समुदाय विशेष द्वारा आबादी बढ़ाने हेतु प्रोत्साहित किया गया हो। गत दिनों जब उत्तरप्रदेश की योगी सरकार "जनसंख्या नीति 2021-2030" प्रस्ताव लेकर आई, तब भी इसके पक्ष-विपक्ष में कई प्रतिक्रिया सामने आई। समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने इसका विरोध करते हुए कहा- "बच्चे कुदरत की देन है, रुकावट डालने का हक किसी को नहीं।" आखिर ऐसे चिंतन का कारण क्या है?
केरल में कोट्टायम स्थित पाला चर्च द्वारा जारी घोषणा के अनुसार, वर्ष 2000 के बाद शादी करने वाले जिन भी जोड़ों के 5 या उससे अधिक बच्चे हैं, उन्हें 1,500 रुपये मासिक की वित्तीय सहायता दी जाएगी। साथ ही चौथे और उससे आगे होने वाले बच्चों को पाला के "सेंट जोसेफ कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी" में छात्रवृति दी जाएगी। साथ ही चौथे और बाद के बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं का गर्भ संबंधित समस्याओं का उपचार भी क्षेत्र के "मार स्लीवा मेडिसिटी" अस्पताल में निशुल्क किया जाएगा। चर्च प्रायोजित यह योजना फिलहाल केरल के कुछ क्षेत्रों तक सीमित है।
कोविड-19 के वैश्विक प्रकोप के साए में विश्व (भारत सहित) आज- 25 दिसंबर को क्रिसमस मना रहा है। इस त्योहार के साथ नववर्ष की उल्टी गिनती भी शुरू हो जाती है। सभी पाठकों को इसकी ढेरों शुभकामनाएं। आप सभी कोरोना-मुक्त नए साल में सकुशल, सहर्ष और स्वस्थ प्रवेश करें- ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है।
यूं तो क्रिसमस का संबंध ईसा मसीह की जयंती से है, किंतु इसे अब दुनिया में मनाया जाता है। भारत में ईसाइयों की संख्या देश की कुल आबादी का केवल 2.3 प्रतिशत हैं, तब भी क्रिसमस पर सार्वजनिक अवकाश होता है। किंतु 25 दिसबंर को ही ईसा मसीह का जन्म हुआ था, इसका कोई प्रमाणिक रूप से ऐतिहासिक या वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह तिथि कल्पना पर आधारित है। पवित्रग्रंथ बाइबल में वर्णित गोस्पल कथाओं के अनुसार- बैथलहम में "दिव्य-हस्तक्षेप" के बाद कुंवारी मैरी ने यीशु को जन्म दिया था, वह भी बिना किसी पुरुष संपर्क के। इन कथाओं में भी 25 दिसंबर का उल्लेख नहीं है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स: कितना झूठ, कितना सच
हाल ही में कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्टहंगरहिल्फे द्वारा प्रकाशित "ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020" रिपोर्ट जारी हुई। इसके अनुसार, भारत में भुखमरी की स्थिति गंभीर है और उसका स्थान 107 देशों की सूची में 94वां है। पिछले वर्ष की तुलना में इसमें कुछ सुधार हुआ है। बावजूद इसके आर्थिक रूप से कमजोर पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान से अभी भारत पीछे है।
जैसे ही यह विदेशी रिपोर्ट सार्वजनिक हुई, वैसे ही भारतीय मीडिया- विशेषकर अंग्रेजी मीडिया ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित/प्रसारित किया। कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने भी इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। विदेशी गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्टहंगरहिल्फे द्वारा प्रकाशित यह 15वीं "ग्लोबल हंगर इंडेक्स" रिपोर्ट है। क्या मीडिया ने इस रिपोर्ट और इसके रचनाकार संगठनों की प्रमाणिकता को जांचा या खोजबीन की?
भारत में एनजीओ का काला सच
गत सप्ताह विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफ.सी.आर.ए.) संशोधन विधेयक संसद से पारित हो गया। इस कदम का जहां एक बड़ा वर्ग स्वागत कर रहा है, तो अन्य- जिनका अपना निहित स्वार्थ भी है, वे इसे घातक और लोकतंत्र विरोधी बता रहे है। यह सर्विदित है कि देश के अधिकांश स्वयंसेवी संस्थाओं (एनजीओ) को सर्वाधिक विदेशी चंदा ईसाई धर्मार्थ संगठनों से प्राप्त होता है। एक आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2016-2019 के बीच एफसीआरए पंजीकृत एनजीओ को 58,000 करोड़ का विदेशी अनुदान प्राप्त हुआ था। यक्ष प्रश्न है कि जो स्वयंसेवी संगठन, विदेशों से "चंदा" लेते है- क्या उनका उद्देश्य सेवा करना होता है या कुछ और?
निर्विवाद रूप से देश में कई ऐसे एनजीओ हैं, जो सीमित संसाधनों के बावजूद देश के विकास में महती भूमिका निभा रहे हैं। किंतु कई ऐसे भी है- जो स्वयंसेवी संगठन के भेष में और सामाजिक न्याय, गरीबी, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, मजहबी सहिष्णुता, पर्यावरण, मानवाधिकार और पशु-अधिकारों की रक्षा के नाम पर न केवल भारत विरोधी, अपितु यहां की मूल सनातन संस्कृति और बहुलतावादी परंपराओं पर दशकों से आघात पहुंचा रहे हैं। भारतीय खुफिया विभाग अपनी एक रिपोर्ट में कह चुका है कि विदेशी वित्तपोषित एनजीओ की विकास विरोधी गतिविधियों से देश की अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से 2-3% तक प्रभावित होती है।