Punjab Kesari 2020-12-23

क्रिसमस पर आत्मचिंतन

कोविड-19 के वैश्विक प्रकोप के साए में विश्व (भारत सहित) आज- 25 दिसंबर को क्रिसमस मना रहा है। इस त्योहार के साथ नववर्ष की उल्टी गिनती भी शुरू हो जाती है। सभी पाठकों को इसकी ढेरों शुभकामनाएं। आप सभी कोरोना-मुक्त नए साल में सकुशल, सहर्ष और स्वस्थ प्रवेश करें- ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है। यूं तो क्रिसमस का संबंध ईसा मसीह की जयंती से है, किंतु इसे अब दुनिया में मनाया जाता है। भारत में ईसाइयों की संख्या देश की कुल आबादी का केवल 2.3 प्रतिशत हैं, तब भी क्रिसमस पर सार्वजनिक अवकाश होता है। किंतु 25 दिसबंर को ही ईसा मसीह का जन्म हुआ था, इसका कोई प्रमाणिक रूप से ऐतिहासिक या वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह तिथि कल्पना पर आधारित है। पवित्रग्रंथ बाइबल में वर्णित गोस्पल कथाओं के अनुसार- बैथलहम में "दिव्य-हस्तक्षेप" के बाद कुंवारी मैरी ने यीशु को जन्म दिया था, वह भी बिना किसी पुरुष संपर्क के। इन कथाओं में भी 25 दिसंबर का उल्लेख नहीं है।
Punjab Kesari 2020-12-16

"गोदी मीडिया"- कटु सत्य

भारत के सार्वजनिक विमर्श में इन दिनों "गोदी मीडिया" जुमला बहुत प्रचलित है और दुर्भाग्य से इसका अस्तित्व एक कड़वा सच भी है। चाहे "गोदी मीडिया" संज्ञा का चलन अभी शुरू हुआ हो, किंतु यह पिछले 73 वर्षों से घुन की तरह भारतीय लोकतंत्र को खा रहा है। "गोदी मीडिया" के जन्म और इसके बढ़ते प्रभाव का एक लंबा इतिहास है। पं.नेहरू का सेकुलरवाद, वामपंथी विचारधारा का अधिनायकवाद और जिहादी मानसिकता- यह तीनों अलग-अलग होते हुए भी एक बड़ी सीमा तक एक-दूसरे का पर्याय है। जब वामपंथ के सहयोग से जिहादी पाकिस्तान का जन्म हुआ, तब पं.नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने पार्टी में उन नेताओं (मुस्लिम सहित) को शामिल करके "सेकुलर" घोषित कर दिया, जो स्वतंत्रता से पहले पाकिस्तान के लिए आंदोलित थे। विडंबना देखिए कि जो कलतक इस्लामी पाकिस्तान के पैरोकार थे, वे "सेकुलर" हो गए और अखंड भारत के पक्षधर "सांप्रदायिक"। खेद है कि यह परंपरा आज भी जारी है। उसी विरोधाभास के गर्भ से एक विशेष मीडिया संस्कृति ने जन्म लिया, जिसका विचार-वित्तपोषण तथाकथित "सेकुलर" सत्ता प्रतिष्ठान की "गोदी" में हुआ। कालांतर में इसी "गोदी मीडिया" ने सच्चे राष्ट्रवादियों, प्रतिकूल विचारधारा रखने वालों और सनातन भारत पर गौरवान्वित लोगों को लांछित करने हेतु सफेद झूठ, विकृत तथ्यों और अभद्र भाषा का उपयोग धड़ल्ले से किया। वास्तव में, "गोदी मीडिया" को इसका प्रशिक्षण उन देशों में मिला था, जहां वे सरकारी खर्चें पर "स्वतंत्र पत्रकारिता" का पाठ सीखने सोवियत संघ और पूर्वी यूरोपीय देशों का दौरा करते थे।
Punjab Kesari 2020-12-09

क्या दक्षिण की राजनीति बदलेगी?

क्या अब दक्षिण भारत की राजनीति में परिवर्तन आएगा? अभी तक कर्नाटक को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी की आंधप्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु में उपस्थिति अभी बहुत सीमित है। यहां तक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी इस चार प्रदेशों की भाजपा ईकाई में जान नहीं फूंक पाई है। किंतु क्या अब इसमें परिवर्तन होगा? हाल ही में ग्रेटर हैदराबाद नगर निकाय चुनाव के नतीजे आए, जिसमें भाजपा 4 से सीधा 48 सीटों पर पहुंच गई। वर्ष 2016 के चुनाव में जहां उसे 10.34 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे, वह इस वर्ष बढ़कर 35.5 प्रतिशत पर पहुंच गया। इससे पहले तेलगांना विधानसभा की एक सीट पर हुए उप-चुनाव में भी भाजपा 38.5 प्रतिशत मतों के साथ विजयी हुई थी। ऐसा क्या हुआ है कि दक्षिण भारत में भाजपा एक विकल्प बन रही है? इस प्रश्न का उत्तर- कांग्रेस के वैचारिक स्खलन और उसके संकुचित होते राजनीतिक आधार में छिपा है। स्वतंत्रता के समय तक कांग्रेस का वैचारिक अधिष्ठान सरदार पटेल के राष्ट्रवाद और गांधीजी के सनातन विचारों से ओतप्रोत था। किंतु इन दोनों जननेताओं के निधन पश्चात कांग्रेस पर "समाजवादी" पं.नेहरू का प्रभाव बढ़ गया। परिणामस्वरूप, कालांतर में पं.नेहरू की सुपुत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा 1969-70 में वामपंथी चिंतन को आत्मसात करने के बाद कांग्रेस का शेष राष्ट्रवादी और सनातनी दृष्टिकोण विकृत हो गया।
Amar Ujala 2020-11-26

"लव-जिहाद" की सच्चाई

क्या "लव-जिहाद" वास्तविकता है या मिथक? यह प्रश्न इसलिए उठ रहा है, क्योंकि गत 24 नवंबर को उत्तरप्रदेश सरकार ने गैरकानूनी मतांतरण संबंधी अध्यादेश पारित कर दिया। मध्यप्रदेश, हरियाणा, असम और कर्नाटक की सरकारों ने भी ऐसा ही कानून लाने निर्णय किया है। प्रस्तावित प्रारूप के अनुसार, बहला-फुसलाकर, प्रलोभन, लालच, बलपूर्वक, झूठ बोलकर हुए मतांतरण को अपराध माना जाएगा और ऐसा करने वाले को 1-10 वर्ष कारावास हो सकती है। यह सभी लोगों पर समान रूप से लागू होगा। जैसे ही इसपर सार्वजनिक विमर्श शुरू हुआ, वैसे ही स्वघोषित सेकुलरिस्टों और वामपंथियों के कुनबे ने इसे सांप्रदायिक और प्रतिगामी बताकर सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कटघरे में खड़ा कर दिया। इसी बीच विवाह हेतु मतांतरण पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो निर्णय सामने आए। एक मामले में मुस्लिम युवती समरीन हिंदू से शादी पश्चात प्रियांशी बन गई, जिसे अदालत ने अवैध माना और कहा, "केवल विवाह के लिए मतांतरण वैध नहीं"। वही दूसरे घटनाक्रम में हिंदू युवती प्रियंका, सलामत अंसारी से निकाह पश्चात मुस्लिम बन गई, जिसे उसी न्यायालय ने "पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार" बता दिया।
Punjab Kesari 2020-11-25

गुरु नानक देवजी की शिक्षाओं को समझने का समय

"सतगुरु नानक प्रगट्या, मिटी धुंध जग चानन होया, कलतारण गुरु नानक आया.." आगामी 30 नवंबर को विश्वभर में सिख पंथ के संस्थापक श्री गुरु नानक देवजी (1469-1539) की 552वीं जयंती मनाई जाएगी। जब हम इस पवित्र दिन के बारे में सोचते है, तो एक राष्ट्र के रूप में हमने क्या भूल की है- उसका भी एकाएक स्मरण होता है। 1930-40 में जब इस्लाम के नाम भारत के विभाजन हेतु मुस्लिम लीग, ब्रिटिश और वामपंथी मिलकर विषाक्त कार्ययोजना तैयार कर रहे थे, तब हमने जो सबसे बड़ी गलतियां की थी- उनमें से एक यह भी है कि खंडित भारत ने गुरु नानकजी की जन्मस्थली ननकाना साहिब पर अपना दावा छोड़ दिया। पाकिस्तान एक घोषित इस्लामी राष्ट्र है। पिछले 73 वर्षों से पवित्र ननकाना साहिब उसी पाकिस्तान में स्थित है- जहां के सत्ता-अधिष्ठान ने मिसाइलों और युद्धपोत के नाम उन्हीं क्रूर इस्लामी आक्रांताओं- गजनवी, बाबर, गौरी, अब्दाली और टीपू-सुल्तान आदि पर रखे है- जिसके विषैले चिंतन से संघर्ष करते हुए सिख गुरुओं सहित अनेक शूरवीरों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इतने वर्षों बाद भी यदि आज हमारी मौलिक पहचान (हिंदू और सिख) सुरक्षित है, तो बहुत हद तक इसका श्रेय उन अमर बलिदानियों को जाता है, जिन्होंने कौम और हिंदुस्तान की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। इन हुतात्माओं की श्रृंखला में गुरु अर्जनदेवजी, गुरु तेग बहादुरजी, गुरु गोबिंद सिंहजी, बंदा सिंह बहादुर बैरागी, अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह इत्यादि का बलिदान- एक कृतज्ञ राष्ट्र को सदैव स्मरण रहेगा।
Punjab Kesari 2020-11-18

देश में नागरिकों की "गैर-जिम्मेदारी" का कारण

दमघोंटू वायु-प्रदूषण के कारण राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने एक आदेश जारी करते हुए देशभर में 30 नवंबर तक पटाखे जलाने और उसके विक्रय पर रोक लगाई थी। किंतु दीपावली (14 नवंबर) पर लोगों ने एनजीटी द्वारा जारी प्रतिबंधों की धज्जियां उड़ा दी और जमकर आतिशबाजियां की। स्वाभाविक है कि इससे बहुत से सुधी नागरिकों में क्षोभ और आक्रोश उत्पन्न हुआ। अधिकांश को लगा कि हम भारतीय अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति सजग नहीं है। उनकी चिंता इसलिए भी तर्कसंगत है, क्योंकि जहरीली हवा न केवल कई रोगों को जन्म देती है, अपितु यह पहले से श्वास संबंधी रोगियों के लिए परेशानी का पर्याय बन जाती है। वैश्विक महामारी कोविड-19 के कालखंड में तो यह स्थिति "कोढ़ में खुजली" जैसी है। यह सही है कि कुछ देशों में नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति भारतीयों की तुलना में अधिक जागरुक है। किंतु क्या दीपावली के समय एनजीटी के आदेशों की अवहेलना का एकमात्र कारण भारतीयों में समाज, पर्यावरण और देश के प्रति संवेदनशीलता का गहरा आभाव होना है? क्या यह सच नहीं कि किसी समाज को प्रभावित करने में किसी भी संस्थान या व्यक्ति-विशेष की विश्वसनीयता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है? जैसा एनजीटी का रिकॉर्ड रहा है- क्या उस पृष्ठभूमि में इस संस्था पर लोगों का विश्वास है?
Dainik Jagran 2020-11-12

चीन पर चुप्पी, फ्रांस का विरोध क्यों?

पेरिस-नीस की आतंकवादी घटनाओं पर फ्रांसीसी प्रतिक्रिया के खिलाफ तमाम इस्लामी राष्ट्र और भारतीय उपमहाद्वीप के लाखों मुसलमान गोलबंद है। कराची स्थित इस्लामी उपद्रवियों ने जहां फ्रांस विरोधी प्रदर्शन में हिंदू मंदिर तोड़कर उसमें रखी मूर्तियों को नष्ट कर दिया, तो उन्मादी भीड़ ने ढाका स्थित कोमिला में दर्जनों अल्पसंख्यक हिंदुओं के घरों को आग लगा दी। अब घटना हुई फ्रांस में, किंतु हिंदुओं पर गुस्सा क्यों फूटा? शायद इसलिए, क्योंकि ईसाइयों की भांति हिंदू भी जिहादियों की नज़र में "काफिर" है। भारत में- भोपाल, मुंबई, हैदराबाद आदि नगरों में, जहां हजारों मुसलमानों ने उत्तेजित नारों के साथ प्रदर्शन किया, तो कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों (मुनव्वर राणा सहित) ने फ्रांस की आतंकवादी घटनाओं को उचित ठहराते नजर आए। मुसलमान आखिर किस बात से आक्रोशित है? उत्तेजित प्रदर्शनकारियों की नाराज़गी का कारण पैगंबर मोहम्मद साहब के कार्टून से जनित हिंसक घटनाक्रम में फ्रांस का "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" की रक्षा में डटे रहना है। वह इसे पैगंबर साहब का अपमान और इस्लाम पर हमला मान रहे है। क्या वाकई फ्रांस ने ऐसा कुछ किया है?
Amar Ujala 2020-11-12

बिहार चुनाव और उसके परिणाम में निहित संदेश

हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम आया। कांटे की टक्कर में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पूर्ण बहुमत के साथ बिहार में फिर से सरकार बनाने में सफल हुई। वहां राजग- विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, वामपंथियों ने मिलकर जिस महागठबंधन की छत्रछाया में चुनाव लड़ा, उसका घोषित आधार "सेकुलरवाद" था। क्या बिहार में मोदी-नीतीश की जीत, सेकुलरिज्म की हार होगी?- नहीं। वास्तव में, यह उस विकृत गोलबंदी की पराजय थी, जिसका दंश भारतीय राजनीति दशकों से झेल रहा है। स्वतंत्रता के बाद देश नेहरूवादी नीतियों से जकड़ा हुआ था, जिसमें वाम-समाजवाद का प्रभाव अत्याधिक था। जब आपातकाल के दौरान 1976 में असंवैधानिक रूप से बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा रचित संविधान की प्रस्तावना में लिखे "संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य" में "सेकुलर" शब्द जोड़ दिया गया, तब स्थिति और विकृत हो गई। उस समय तक भारतीय अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी थी। परिणामस्वरूप, 1991 में देश को अपने दैनिक-व्यय और अंतरराष्ट्रीय देनदारियों की पूर्ति हेतु अपना स्वर्ण भंडार गिरवी रखने की शर्मिंदगी झेलनी पड़ी।