Dainik Jagran 2014-07-22

सेकुलरवाद की विकृतियां

विगत शुक्रवार को अमरनाथ यात्रा के मुख्य आधार शिविर बालटाल पर कहर टूटा। यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं थी, बल्कि मानव निर्मित त्रासदी थी। लंगर वालों और घोड़े वालों के बीच हुए तथाकथित संघर्ष में साठ से अधिक टेंटों में आग लगा दी गई, सामान लूट लिए गए और तीर्थयात्रियों को अपमानित कर मारापीटा गया। दर्जनों घायल हो गए, जिनमें कई सुरक्षाकर्मी भी हैं। पीड़ितों के अनुसार घोड़े वालों के समर्थन में नारे लगाते आए शरारती तत्त्वों के हुजुम ने टेंटों में सोए हुए लोगों को भी उठाकर पीटा। बहुत से तीर्थयात्रियों ने सेना की मदद से अपनी जान और सम्मान की रक्षा की और जिन तक सैनिक सहायता नहीं पहुंच सकी, वे मजहबी जुनून के शिकार बने। दिल्ली और देश के अन्य भागों में बहुसंस्करण वाले एक प्रमुख समाचार पत्र को छोड़कर बाकी मीडिया ने इस बड़ी घटना पर चुप्पी साध ली। कल्पना कीजिए यदि मुट्ठी भर हज यात्रियों के साथ कहीं ऐसी घटना हो जाती तो न केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में बवाल मच जाता। यह दोहरा मापदंड क्यों? क्या सेकुलरिज्म का अर्थ यह है कि हिंदुओं को छोड़कर बाकी सभी समुदायों के मजहबी अधिकारों की ही चिंता की जाए?
Dainik Jagran 2014-07-09

विश्व शांति को नई चुनौती

गृहयुद्ध से जूझ रहे इराक के घटनाक्रम न केवल पश्चिम एशिया, बल्कि पूरी दुनिया के सामने नई चुनौती है। इराक और सीरिया में सक्रिय सुन्नी आतंकवादी संगठन ‘इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड द लेवेंट’ (आईएसआईएल) ने इराक और सीरिया में अपने कब्जे वाले क्षेत्र को खिलाफत अर्थात इस्लामिक स्टेट घोषित कर अपने मुखिया अबू बकर अल बगदादी को खलीफा बताते हुए उसे दुनिया के मुसलमानों का नेता भी घोषित किया है। उथलपुथल से जूझ रहे इराक पर कुर्द, शिया और सुन्नी बहुल इलाकों के रूप में तीन टुकड़ों में बंटने का खतरा मंडरा रहा है। आईएसआईएल द्वारा इस्लामिक स्टेट की घोषणा के बाद उत्तरी इराक में पूर्ण स्वतंत्र कुर्दिष स्टेट बनाने को लेकर घमासान मचा है। आईएसआईएल की बढ़ती शक्ति और उसका एजेंडा विश्व शांति के लिए अलग खतरा है।