गृहयुद्ध से जूझ रहे इराक के घटनाक्रम न केवल पश्चिम एशिया, बल्कि पूरी दुनिया के सामने नई चुनौती है। इराक और सीरिया में सक्रिय सुन्नी आतंकवादी संगठन ‘इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड द लेवेंट’ (आईएसआईएल) ने इराक और सीरिया में अपने कब्जे वाले क्षेत्र को खिलाफत अर्थात इस्लामिक स्टेट घोषित कर अपने मुखिया अबू बकर अल बगदादी को खलीफा बताते हुए उसे दुनिया के मुसलमानों का नेता भी घोषित किया है। उथलपुथल से जूझ रहे इराक पर कुर्द, शिया और सुन्नी बहुल इलाकों के रूप में तीन टुकड़ों में बंटने का खतरा मंडरा रहा है। आईएसआईएल द्वारा इस्लामिक स्टेट की घोषणा के बाद उत्तरी इराक में पूर्ण स्वतंत्र कुर्दिष स्टेट बनाने को लेकर घमासान मचा है। आईएसआईएल की बढ़ती शक्ति और उसका एजेंडा विश्व शांति के लिए अलग खतरा है।
दुनियाभर में चल रही हिंसक घटनाएं क्या मध्यकालीन बर्बर युग की दस्तक हैं? इराक की ‘इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड लेवैंट’ (आइएसआइएल) नामक सुन्नी आतंकी संगठन के आतंकियों के द्वारा 1700 इराकी जवानों को मौत के घाट उतारना, केन्या के पेकटोनी शहर में सोमाली आतंकियों द्वारा 48 लोगों की बर्बर हत्या, अफगानिस्तान में वोट देने की सजा के तौर पर तालिबानियों द्वारा 11 अफगानी नागरिकों की उंगलियां काटना, केन्या में अल षबाब द्वारा 48 लोगों की हत्या, पड़ोसी मुल्क बंगलादेष में बांग्लाभाषियों और उर्दू भाषियों के बीच हिंसा में 10 से अधिक की मौत, पाकिस्तान के कराची एअरपोर्ट पर हुआ आतंकी हमला और नाइजेरिया में बोको हरम के द्वारा 200 से अधिक छात्राओं का अपहरण, क्या रेखांकित करता है? इन आतंकी हमलों में मरने वाले अधिकांश किस मजहब के हैं? क्या यह सत्य नहीं कि मजहब के नाम पर हिंसा करने वाले और उस हिंसा के बदकिस्मत शिकार एक ही मजहब- इस्लाम के हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने सार्वजनिक जीवन का शुभारंभ गंगा आरती से किया। संभवतः वे देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के लिए सौ दिन का जो एजेंडा तैयार किया है, उस पर अमल करते हुए जल संसाधन और पर्यटन मंत्रालय ने गंगा नदी की स्वच्छता और उसके घाटों का पुनरुद्धार कार्य प्रमुखता से लिया है। गंगा हमारी सांस्कृतिक विविधता के बीच एकता की गवाह है। हिमालय को ‘वाटर टावर ऑफ एशिया’ कहा जाता है, जहां गंगोत्री ग्लेशियर में गौमुख से निकलने वाली गंगा का आगे चलकर सहयोगी नदियों- मंदाकिनी, अलकनंदा, पिंडर, धौली, काली, गौरी गंगा और यमुना समेत सैकड़ों छोटी-बड़ी जल धाराओं से मिलन होता है। हिमालय में अपने उद्गम से निकल कर गंगा बंगाल की खाड़ी में गंगासागर में जाकर गिरती हैं। नाना प्रदेशों व भिन्न वर्ण-मतों के बीच से गुजरती हुई गंगा सर्वत्र उसी सम्मान से देखी जाती है। किंतु जगतारिणी गंगा आज विकास की अंधगति को भोगने के लिए अभिषप्त है।
विगत बुधवार को संसद के केंद्रीय कक्ष में स्वतंन्नता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर के तैलचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर भारतीय जनता पार्टी का पूरा शीर्ष नेतृत्व, लालकृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, वैंकेया नायडू, अनंत कुमार सहित अन्य बहुत से मंत्री उपस्थित थे। नई सरकार ने अंडमान निकोबार जेल में उस उद्धरण पट्टिका को फिर से ससम्मान स्थापित करने का भी निर्णय लिया है, जिसे सन् 2004 में केंद्रीय सत्ता पर आने के बाद कांग्रेस के तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मणिषंकर अय्यर ने हटवा दिया था।
राजग के पिछले कार्यकाल में जब संसद के केंद्रीय कक्ष में सावरकर का तैलचित्र स्थापित किया जा रहा था, तब सोनियाजी के नेतृत्व में कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने समारोह का बहिष्कार कर इस महान देशभक्त का निरादर किया था। उनके अनुसार सावरकर का स्वतंत्रता आंदोलन में कोई योगदान नहीं है। क्या विचारधारा और कार्यशैली पृथक होने से क्रांतिकारियों के बलिदान को गौण माना जाए? क्या देशभक्त होने के लिए कांग्रेसी विचारधारा से संबद्धता जरूरी है?
पिंजड़े में बंद तोते की कहानी
कोलगेट घोटाले की जांच रिपोर्ट सरकार से साझा करने को लेकर विगत बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीई को कड़ी फटकार लगाते हुए उसे ‘पिंजड़े में बंद तोते’की संज्ञा दी है। अदालत ने कहा कि यह तोता अपने पालक की जुबां ही बोलता है। इसके साथ ही अदालत ने कानूनमंत्री द्वारा रिपोर्ट में संशोधन करने और कोयला मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय के सचिवों द्वारा रिपोर्ट का अवलोकन करने पर गंभीर आपत्ति जताई है। अदालत ने पूरे प्रकरण को ‘पिंजड़े में बंद एक तोते और कई मालिकों’की दुर्भाग्यपूर्ण कहानी बताया। अदालत ने सरकार को चेताते हुए साफ संकेत भी दे दिया है कि यदि सीबीआई को स्वतंत्र नहीं किया गया तो अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ेगा।
बेखबर-बेअसर भ्रष्टाचारी सरकार
कोयला घोटाले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी से पूरी सरकार कटघरे में खड़ी हो गई है। कोयला घोटाले की जांच कर रही सीबीआई को सर्वोच्च न्यायालय ने जांच की प्रगति सरकार से साझा नहीं करने की हिदायत दी थी। किंतु सीबीआई जिस जांच रिपोर्ट को अदालत में पेश करने वाली थी, उसे कानून मंत्री और अन्य सिपहसालारों द्वारा काटछांट कर सरकार के अनुकूल बनाया गया। इस पर विगत मंगलवार को अदालत ने कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है, ‘‘यह इतना बड़ा विश्वासघात है कि उसने पूरी नींव को हिला कर रख दिया है...यह सामान्य नहीं, बल्कि जानबूझकर किया गया धोखा है। पहले ही तय कर लिया गया था कि अदालत को इसकी जानकारी नहीं दी जाएगी।’’ सरकार के इस छलफरेब के कारण पूरी दुनिया हम पर हंस रही है। स्वाभाविक है कि सत्ता के षीर्ष स्तर तक फैले भ्रष्टाचार से सर्वाधिक क्षति भारत की साख और उसकी छवि को हुई है। किंतु बड़े-बड़े घोटालों के सामने आने के बाजूद कथित ईमानदार छवि वाले देष के प्रधानमंत्री शर्मसार नहीं हैं। क्यों?
क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?
पिछले साल 400 से अधिक और इस वर्ष अब तक करीब सौ बार चीन की सेना ने भारतीय सीमा का अतिक्रमण किया है। अतिक्रमण की 90 प्रतिशत घटनाएं लद्दाख क्षेत्र में दर्ज की गई हैं। ताजा अतिक्रमण में विगत 15 अप्रैल की मध्यरात्रि को चीन की सेना पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्दी में भारतीय सीमा क्षेत्र में 10 किलोमीटर अंदर, बुरथे तक घुस आई। करीब 17,000 फीट की ऊंचाई वाले इस क्षेत्र में चीनी सेना ने तीन अस्थायी चौकी निर्मित किए हैं। भारत द्वारा आपत्ति दर्ज कराए जाने के बावजूद चीनी सैनिक पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। उसने उक्त क्षेत्र को अपना बताया है। चीन के इस दुस्साहस का कारण क्या है? यक्ष प्रश्न यह भी कि सत्ता अधिष्ठान चीन को माकूल जवाब देने से कतराता क्यों है?
अमेरिका के सर्वाधिक सुरक्षित शहर बोस्टन में तमाम सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद इस्लामी आतंक ने एक बार फिर तांडव मचा ही दिया। इस हमले के दूसरे दिन हमारे देश में बंगलौर के मलेश्वरम में भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय के निकट हुए आतंकी हमले में 13 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। बोस्टन मैराथन में भाग लेने आए 90 देषों के 28 हजार धावकों के लिए स्वाभाविक तौर पर कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए होंगे, किंतु आतंकी अपने मंसूबे में कामयाब रहे। दोहरे बम विस्फोट में तीन निरपराध मारे गए, जबकि दो सौ लोग गंभीर रूप से घायल हैं।
भारत पर आतंकी हमलों की लंबी सूची है। भारत सहित कई ऐसे देश जो इस्लाम के अनुयायी नहीं हैं, वे सर्वभौम इस्लामी एजेंडे के कारण जिहादियों के निषाने पर हैं। शरीआ का पूर्ण पालन नहीं करने वाले इस्लामी देश भी जिहादियों के कहर से अछूते नहीं हैं। किंतु इस्लामी आतंकवाद को लेकर सेकुलर दलों की जो सोच है, उसके कारण इस्लामी आतंकवाद पर काबू पाना असंभव हो रहा है।