Dainik Jagran 2013-05-02

बेखबर-बेअसर भ्रष्टाचारी सरकार

कोयला घोटाले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी से पूरी सरकार कटघरे में खड़ी हो गई है। कोयला घोटाले की जांच कर रही सीबीआई को सर्वोच्च न्यायालय ने जांच की प्रगति सरकार से साझा नहीं करने की हिदायत दी थी। किंतु सीबीआई जिस जांच रिपोर्ट को अदालत में पेश करने वाली थी, उसे कानून मंत्री और अन्य सिपहसालारों द्वारा काटछांट कर सरकार के अनुकूल बनाया गया। इस पर विगत मंगलवार को अदालत ने कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है, ‘‘यह इतना बड़ा विश्वासघात है कि उसने पूरी नींव को हिला कर रख दिया है...यह सामान्य नहीं, बल्कि जानबूझकर किया गया धोखा है। पहले ही तय कर लिया गया था कि अदालत को इसकी जानकारी नहीं दी जाएगी।’’ सरकार के इस छलफरेब के कारण पूरी दुनिया हम पर हंस रही है। स्वाभाविक है कि सत्ता के षीर्ष स्तर तक फैले भ्रष्टाचार से सर्वाधिक क्षति भारत की साख और उसकी छवि को हुई है। किंतु बड़े-बड़े घोटालों के सामने आने के बावजूद कथित ईमानदार छवि वाले देश के प्रधानमंत्री शर्मसार नहीं हैं। क्यों? इन पंक्तियों के लिखे जाने तक संसद ठप्प है। राजकोष के भारी नुकसान के बावजूद जहां सरकार बेखबर है, वहीं देश के हालात सरकार के बेअसर होने की भी पुष्टि करते हैं। आंतरिक मोर्चे पर सरकार जहां नीतिगत अपंगता का शिकार है, वहीं विदेश नीति के मामले में सरकार का जो ढुलमुल रवैया है, उसे देखकर ही आज पाकिस्तान और चीन का दुस्साहस भी हाल के दिनों में बढ़ा है। चीन विगत 15 अप्रैल की मध्यरात्रि को भारतीय सीमा में न केवल उन्नीस किलोमीटर अंदर घुस आता है, बल्कि वहां तीन अस्थायी चैकियां भी स्थापित कर लेता है। भारत का सत्ता अधिष्ठान चीनी सैनिकों से पीछे हटने की मिन्नतें कर रहा है, किंतु पीछे हटना तो दूर इस अवधि में चीनी सैनिकों ने दो और अस्थायी चैकियां खड़ी कर लीं। अब वहां एक बैनर भी लग गया है, जिस पर लिखा है, ‘‘आप चीन की सीमा में हैं।’चीन का दावा है कि वह अपनी सीमा में मौजूद है और उस क्षेत्र में यथास्थिति बहाल करने के बदले में उसने भारत से पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्दी क्षेत्र से अपने बंकर हटाने की मांग की है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार षिवषंकर मेनन सहित रक्षा, गृह और विदेश जैसे महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों के सचिव हेकड़ी दिखा रहे चीन के समक्ष हाथ बांधे नतमस्तक है। चीन बार-बार इस तरह का हिमाकत इसलिए ही कर पा रहा है क्योंकि वह केंद्र की अपाहिज सरकार को बखूबी जानता है। चीन ल्हासा तक सड़क और रेलमार्ग विकसित कर चुका है। उसकी तुलना में सीमांत और पर्वतीय क्षेत्रों में जो विकास ब्रितानी शासक कर गए थे, हम वहीं ठहरे हुए हैं। इसमें एकमात्र अपवाद जम्मू-कष्मीर रेलमार्ग है, जिसकी बुनियाद अटल बिहारी वाजपेयीजी ने रखी थी। अनेकों पर्यटन स्थलों से घिरे होने के बावजूद उत्तराखंड में रेल की अंतिम पहुंच काठगोदाम तक ही है। चीन को पता है कि युद्ध की स्थिति में वांछित साजोसामान सीमा तक पहुंचाने में ही भारत को कई दिन लग जाएंगे। प्रधानमंत्री चीनी घुसपैठ को सीमित समस्या बताकर इसे अनावष्यक तूल नहीं देने की अपील कर रहे हैं। यह कब्जा करने की नीयत से घर में घुस आए दबंग पड़ोसी का स्वागत-सत्कार नहीं तो क्या है? क्या प्रधानमंत्री को सन् बासठ का अपमानजनक पराजय का ज्ञान नहीं है? तब तत्कालीन सत्ता अधिष्ठान इसी तरह चीन की विस्तारवादी मानसिकता से आंखें मूंदे बैठा था? क्या इसी मानसिकता के कारण तिब्बत को चीन ने निगल कर हमसे हमारा प्राकृतिक प्रहरी छीन नहीं लिया? कटु सत्य तो यह है कि भारतीय सत्ता अधिष्ठान की उदासीनता के कारण ही चीन बारबार न केवल घुसपैठ की हिमाकत कर रहा है, बल्कि ईंच-ईंच कर सीमांत के भारतीय इलाकों पर अपना कब्जा भी जमाता जा रहा है। दूसरी ओर गलत पहचान के आधार पर पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में बंद भारतीय कैदी सरबजीत को वहां के अन्य कैदियों ने बर्बरतापूर्वक पीटपीट कर मरणासन्न कर दिया है। इससे पूर्व पाकिस्तान के सैनिक भारतीय सीमा में घुस हमारे एक सैनिक का सिर काट कर ले गए थे। उस शहीद का सिर वापस लाने की चिंता सरकार को नहीं हुई। सरबजीत पर जानलेवा हमले से पूर्व कोट लखपत जेल में ही भारतीय कैदी चमेल सिंह को पीटपीट कर मौत के घाट उतारा गया था। पाकिस्तान ने चमेल सिंह का शव तो भारत को सौंप दिया, किंतु परिजनों की मांग के बावजूद अब तक पोस्टमोर्टम रिपोर्ट नहीं सौंपी है। न ही केंद्र सरकार को चमेल के परिजनों को न्याय दिलाने की चिंता है। चमेल और सरबजीत पर जानलेवा हमला बदले की भावना से किया गया है। संसद पर हमला करने के आरोपी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के बाद से ही पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठन बदला लेने का खम ठोक रहे थे। सरबजीत पर हमला लश्कर ए तैयबा की सुनियोजित साजिश है। भारतीय खुफिया एजेंसियों की गोपनीय रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। किंतु सरकार का ढुलमुल रवैया है। सरबजीत की तुलना में मुंबई पर आतंकी हमला करने वालों में से जिंदा पकड़े गए अजमल कसाब और संसद पर हमले की साजिश रचने वाले अफजल गुरु की सुरक्षा पर भारत सरकार ने करोड़ों रुपए फूंकने में देरी नहीं की। सरबजीत पर हुए हमले के बाद भारतीय जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों की सुरक्षा इंतजाम बढ़ाने में जो सरकार मुस्तैदी दिखा रही है, वह सरबजीत की जान बचाने और अन्य भारतीय कैदियों की सुरक्षा के लिए चिंतित क्यों नहीं है? अजमल कसाब को फांसी दिए जाने के बाद से पाकिस्तान ने सरबजीत की रिहाई प्रक्रिया रोक दी थी। मजहबी जुनून से संचालित पाकिस्तान से और क्या अपेक्षा की जा सकती है, किंतु भारत की विवशता वोट बैंक की घिनौनी राजनीति से प्रेरित है, इससे भी कोई इनकार कैसे कर सकता है? स्वयं अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के प्रश्न पर सरकार में लंबे समय तक उहापोह की स्थिति थी। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद से लेकर वर्तमान नेशनल कान्फ्रेंस के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अफजल को फांसी दिए जाने से मुसलमानों के नाराज होने और घाटी में आतंकवाद के फिर से उफान पर आने की चेतावनी दी थी। वोट बैंक की राजनीति के सहारे अपना उल्लू साधने वाली कांग्रेस नीत सरकार की घबराहट स्वाभाविक थी। आजादी के बाद देश ने कभी ऐसी नक्कारा सरकार नहीं देखी है। हमारे चारों ओर अराजकता का माहौल है। कहने को दिल्ली में सरकार है, किंतु उसका होना, न होना बराबर है। जनता आकाश छूती महंगाई से पस्त है। सत्ता के शीर्ष स्तर पर फैले भ्रष्टाचार और लूटपाट से अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की साख घटी है। नीतिगत अपंगता के कारण अर्थव्यवस्था कंगाली के कगार पर है। किंतु सरकार अधिनायकवादी तरीकों से अपनी नाकामियों को छिपाना चाहती है, किंतु उसका खामियाजा भारत के आम आदमी और भारत की संप्रभुता व अस्मिता को ही चुकानी पड़ रही है।