73 वर्ष बाद भी अधूरी है भारत की आज़ादी
कल 15 अगस्त है और खंडित भारत अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। परंतु खेद है कि सात दशक बाद भी यह आज़ादी अधूरी है और चिंता का विषय यह है कि वह अपूर्ण स्वतंत्रता आज खतरे में है। हमारी सीमाएं सुरक्षित नहीं है। देश के विभिन्न हिस्सों- विशेषकर कश्मीर और 82 नक्सल प्रभावित जिलों में सामान्य नागरिक अपने मौलिक अधिकारों से वंचित है। पांच लाख कश्मीर पंडित अब भी अपने मूल निवासस्थान पर लौट नहीं पाए है।
देश के कई भागों में- विशेषकर कश्मीर और नक्सली क्षेत्रों में साधारणजन अपनी पसंद के राजनीतिक दल में काम करने के लिए स्वतंत्र नहीं है। पिछले कुछ समय में अनेकों कश्मीरी मुस्लिम नेताओं को इस्लामी आतंकवादियों ने इसलिए मौत के घाट उतार दिया, क्योंकि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी में अपना विश्वास जताया था। यही स्थिति केरल और पश्चिम बंगाल की भी है, जहां राजनीतिक और वैचारिक विरोधियों की हत्या और दमन का काला इतिहास है। गत वर्ष ही छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने भाजपा विधायक भीमा मंडावी को मौत के घाट उतार दिया। इसके अतिरिक्त, गरीबों की आर्थिक स्थिति का लाभ उठाकर आज भी धनबल और धोखा देकर मतांतरण किया जा रहा है।
मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम, आरोप और सत्य
श्रीराम भारतीय सनातन संस्कृति की आत्मा है और उनका जीवन इस भूखंड में बसे लोगों के लिए आदर्श। राम मर्यादापुरुषोत्तम है। अर्थात्- वे मर्यादा की परिधि में रहते है। निजी या पारिवारिक सुख-दुख उनके लिए कर्तव्य के बाद है। जब श्रीराम अयोध्या नरेश बने, तब उनके लिए बाकी सभी संबंध गौण हो गए। एक धोबी के कहने पर वह अपनी प्रिय सीता का त्याग कर देते है। आज के संवाद शैली में धोबी दलित है। परंतु राम के लिए, प्रजा रूप में, उसके शब्द मानो ब्रह्म वाक्य हों। अवश्य ही यह उनके अपने लिए, सीता और उनकी होने वाली संतानों पर घोर अन्याय है। परंतु राजधर्म अपनी कीमत मांगता है।
श्रीराम ने सीता की अग्निपरीक्षा क्यों ली?- क्योंकि एक शासक के रूप में वह अपने आपको और परिवार को जनता के रूप उत्तरदायी मानते है। महर्षि वाल्मिकी प्रणीत रामाणय में श्रीराम कहते हैं, प्रत्ययार्थं तु लोकानां त्रयाणां सत्यसंश्रय:। उपेक्षे चापि वैदेहीं प्रविशन्तीं हुताशनम्।। अर्थात्- तथापि तीनों लोकों के प्राणियों के मन में विश्वास दिलाने के लिए एकमात्र सत्य का सहारा लेकर मैंने अग्नि में प्रवेश करती विदेह कुमारी सीता को रोकने की चेष्ट नहीं की।
श्रीराम मंदिर के पुनर्निर्माण में 73 वर्ष की प्रतीक्षा क्यों?
यह ठीक है कि बुधवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों अयोध्या में राम मंदिर पुनर्निर्माण का काम शुरू हो गया, जो निकट भविष्य में बनकर तैयार भी हो जाएगा। स्वाभाविक है कि इतनी प्रतीक्षा, और संवैधानिक-न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने, के बाद अब करोड़ों रामभक्त प्रसन्न भी होंगे और कहीं न कहीं उनमें विजय का भाव भी होगा। किंतु यह समय आत्मचिंतन का भी है। आखिर स्वतंत्रता के भारत, जहां 80 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है, प्रधानमंत्री पद पर (2004-14 में सिख प्रधामंत्री- डॉ.मनमोहन सिंह) एक हिंदू विराजित रहा है और उत्तरप्रदेश में भी सदैव हिंदू समाज से मुख्यमंत्री बना है- वहां करोड़ों हिंदुओं को अपने मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के लिए कुछ एकड़ भूमि वापस लेने में 73 वर्षों का समय क्यों लग गया?
5 अगस्त का भूमिपूजन क्या 6 दिसंबर 1992 के बिना संभव था?
विगत बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अयोध्या में भूमिपूजन होने के साथ राम मंदिर पुनर्निर्माण कार्य का शुभारंभ हो गया। प्रस्तावित राम मंदिर पत्थर और सीमेंट का एक भवन ना होकर भारत की सनातन बहुलतावादी संस्कृति की पुनर्स्थापना का प्रतीक है- जिसे सैकड़ों वर्षों से विदेशी आक्रांता नष्ट करने का असफल प्रयास कर रहे है।
क्या इस ऐतिहासिक क्षण की कल्पना 6 दिसंबर 1992 के उस घटना के बिना संभव थी, जिसमें कारसेवकों ने बाबरी नामक ढांचे को कुछ ही घंटे के भीतर ध्वस्त कर दिया और इस घटनाक्रम में कई कारसेवक शहीद भी हो गए? वास्तव में, यह कई सौ वर्षों के अन्याय से उपजे गुस्से का प्रकटीकरण था। इसमें 1990 का वह कालखंड भी शामिल है, जब तत्कालीन मुलायम सरकार के निर्देश पर कारसेवकों पर गोलियां चला दी गई थी, जिसमें कई निहत्थे रामभक्तों की मौत हो गई थी।
आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीरामजन्मभूमि अयोध्या पर भव्य राम मंदिर पुनर्निर्माण का शुभारंभ किया, तब 492 वर्षों से चला आ रहा सतत् सांस्कृतिक संघर्ष- निर्णायक बिंदु की ओर अग्रसर हो गया। छह दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचे का विध्वंस, और आज का आयोजन, अपने भीतर उस सभ्यतागत युद्ध को समेटे हुए है, जिसकी शुरूआत 712 में इस्लामी आक्रांता मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण के साथ की थी।
श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति हेतु शताब्दियों तक चला संघर्ष ना तो भूमि के टुकड़े के स्वामित्व के लिए था और ना ही इस्लाम के खिलाफ युद्ध का हिस्सा। जिस आक्रोशित भीड़ ने बाबरी ढांचे को जमींदोज किया, उसने उस दिन अयोध्या-फैजाबाद क्षेत्र में किसी भी मस्जिद या मुसलमान को छुआ तक नहीं। सच तो यह है कि बाबरी ढांचा इबादत के लिए बनाई गई मस्जिद ना होकर "काफिर-कुफ्र" की अवधारणा से प्रेरित मुगल आक्रांता बाबर द्वारा विजितों की सांस्कृतिक पहचान और अस्मिता को समाप्त करने का उपक्रम था।
स्वप्न सुंदरी, स्वर्ण तस्करी और आतंक का कॉकटेल
केरल स्वर्ण तस्करी मामले का प्याज के छिलके की तरह परत दर परत खुलना अब भी जारी है। इस बात के प्रमाण मिले है कि इस तस्करी से होने वाली मोटी कमाई के बड़े हिस्से से आतंकवाद का वित्तपोषण होना था। यह संभवत: देश का पहला ऐसा बहु-आयामी घोटाला है, जो दुनिया की किसी भी क्राइम थ्रिलर फिल्म को मात दे दें। इसमें सोने की तस्करी है, आतंकी घटनाओं का गोरखधंधा है, मंत्री संदेह के घेरे में है, वरिष्ठ नौकरशाह की प्रमाणिक संलिप्ता है। इन सभी के केंद्रबिंदु में एक सुंदरी है और उसके द्वारा रचा मायाजाल भी है।
इस मामले की जड़े कितनी गहरी है, यह इससे बात से स्पष्ट है कि जांच की आंच केरल के मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर संयुक्त अमीरात अरब (यू.ए.ई.) के महावाणिज्य दूतावास तक पहुंच चुकी है। आरोपियों के प्रदेश के कैबिनेट मंत्री व सचिवालय से संपर्क होने की बात सामने आ चुकी है। अभी तक की जांच के अनुसार, पिछले एक वर्ष में राजनायिक मार्ग के माध्यम से 230 किलो- अर्थात् 125-130 करोड़ के सोने की तस्करी हो चुकी है। सोचिए, अभी केवल इतने सोने की तस्करी का खुलासा हुआ है, अनुमान लगाना कठिन नहीं कि ऐसा कितनी बार हो चुका होगा। एनआईए ने खुलासा किया है कि मामले के एक आरोपी के.टी. रमीज के आतंकियों के वित्तपोषण में संलिप्त और देशविरोधी गतिविधियों में शामिल तत्वों के संपर्क में रहा है, जिसके लिए उसने कई विदेश यात्राएं भी की है। मलप्पुरम निवासी रमीज का 2014 से आपराधिक इतिहास रहा है, किंतु हर बार वे बच निकलता था।
कांग्रेस में नेतृत्व, नीति और नीयत का संकट
विगत दिनों कांग्रेस की राजस्थान ईकाई में आए झंझावत ने पार्टी के अस्तित्व पर पुन: प्रश्नचिन्ह लगा दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि 140 वर्ष पुराना राजनीतिक दल आज इच्छामृत्यु मानसिकता से ग्रस्त है। दीवार पर लिखी इस इबारत को पढ़कर कोई भी व्यक्ति (कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व- गांधी परिवार को छोड़कर) आसानी से इस नतीजे पर पहुंच सकता है।
वास्तव में, कांग्रेस में संकट केवल नेतृत्व का ही नहीं है। पार्टी के तीव्र क्षरण में कांग्रेस नेतृत्व की खोटी नीयत और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय समस्याओं पर नीतियों के नितांत अभाव का भी सामान योगदान है। यदि किसी दल में नेतृत्व का टोटा हो, नीयत में कपट हो और नीतियों में भारी घालमेल हो- तो स्वाभाविक रूप से उस दल का न तो वर्तमान है और न ही कोई भविष्य।
कोविड-19 या चाइनीज वायरस!
आलेख लिखे जाने तक, भारत में 170 से अधिक लोग वैश्विक महामारी कोविड-19 से संक्रमित है। अबतक इससे देश में 4 की मृत्यु हो चुकी है, जो सभी 60 आयुवर्ष- अर्थात् वृद्ध थे। इस संकट से निपटने और लोगों जागरुक करने की दिशा में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार (19 मार्च) राष्ट्र के नाम संदेश भी दिया।
बात यदि शेष विश्व की करें, तो यह खतरनाक वायरस चीन के बाद इटली सहित 162 देशों में फैल गया है और लगभग 9,000 लोगों का जीवन समाप्त कर चुका है। आलेख लिखे जाने तक, 2.20 लाख से अधिक लोग पूरे विश्व में इस वायरस से संक्रमित है, तो 85 हजार लोग ऐसे भी है, जो समय रहते चिकित्सीय निरीक्षण में आने के बाद स्वस्थ भी हो गए। इस वैश्विक महासंकट के कारण भारत सहित कई देशों ने अपना संपर्क शेष विश्व से कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार बुरी तरह प्रभावित हो गए। आंतरिक रूप से कई देशों की सरकारों (प्रांतीय सरकार सहित) ने स्कूल कॉलेज आदि शिक्षण संस्थान, मॉल, सिनेमाघर, बाजार और एक स्थान पर इकट्ठा होने आदि पर सशर्त प्रतिबंध लगा दिया है। बचाव में उठाए गए इन कदमों से विश्वभर में सामान्य जीवन मानो ऐसा हो गया है, जैसे कई दशकों पहले हुआ करती थी।
देश का एक और बैंक- येस बैंक गलत कारणों से सार्वजनिक विमर्श में है। केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने समय रहते इस बैंक को अपने नियंत्रण लेकर जमाकर्ताओं का पैसा न केवल डूबने से बचा लिया, साथ ही भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जनता का विश्वास बनाए रखा है। यही नहीं, खाताधारकों और निवेशकों के गाढ़ी कमाई का बंदरबांट कर एक बार विदेश भाग चुके येस बैंक के सह-संस्थापक राणा कपूर को बहाने से देश बुलाकर गिरफ्तार कर लिया। यक्ष प्रश्न है कि आखिर देश के चौथे सबसे बड़े निजी बैंक के रूप में स्थापित- येस बैंक इस स्थिति में क्यों पहुंचा? क्या यह सार्वजनिक उपक्रम बनाम निजी क्षेत्र से संबंधित मामला है?
दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा क्यों भड़की?
देश की राजधानी दिल्ली का उत्तर-पूर्वी हिस्सा 23 फरवरी की रात से अगले 48 घंटों तक हिंसा की आग में जलता रहा। इसकी लपटें सड़क से संसद के भीतर तक भी उठती दिखीं। हिंसा में अबतक सुरक्षा अधिकारी अंकित शर्मा और पुलिसकर्मी रतनलाल सहित 53 लोगों की मौत हो चुकी है, तो 200 से अधिक लोग घायल बताए जा रहे है। मामले में पुलिस ने 250 से अधिक प्राथमिकी दर्ज की है और शाहरुख पठान सहित 900 से अधिक लोगों को या तो गिरफ्तार किया है या फिर हिरासत में लिया है। ऐसे में स्वाभाविक प्रश्न है कि आखिर दिल्ली में हिंसा क्यों भड़की? क्या इसे समय रहते रोका जा सकता था?