भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री नरेंद्र मोदी का विदेश दौरे पर सबसे पहले भूटान और उसके बाद पिछले दिनों नेपाल का दौरा करना क्या रेखांकित करता है? नरेंद्र मोदी नेपाली संसद को संबोधित करने वाले पहले विदेशी राष्ट्र प्रमुख बन गए हैं, किंतु उनके संबोधन के बाद जिस तरह नेपाल की जनता और संसद ने भारत पर अपना अगाध विश्वास प्रकट किया है, उसका क्या निहितार्थ है? नेपाल में भारत के कटु आलोचक माओवादी रहे हैं, किंतु मोदी के अभिभाषण के बाद पुष्प कमल दहल और बाबूराम भट्टराई जैसे माओवादी विचारकों के बदले सुर मोदी की कूटनीतिक सफलता को ही इंगित करते हैं।
जिहाद को मिलता मजहबी बौद्धिक ढाल
संयुक्त राष्ट्र और दुनिया भर के देशों की अपील को ठुकराते हुए फिलीस्तीन के आतंकी सुन्नी संगठन ‘हमास’ ने ईद के पवित्र दिन भी बेकसूर लोगों के खून बहाए। उधर इजराइल भी अपनी संप्रभुता और अस्तित्व को बनाए रखने के लिए ‘ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज’ को जारी रखने पर विवश है। दूसरी ओर इराक और सीरिया में सक्रिय सुन्नी आतंकवादी संगठन ‘इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड द लेवेंट’ (आईएसआईएल) के नेतृत्व में कथित इस्लामी साम्राज्य की पुनस्र्थापना के लिए दुनिया भर के देशों से मुस्लिम युवा हिजरा कर रहे हैं। मई महीने में भारत के कल्याण शहर से इराक के मोसूल कूच कर चुके चार मुस्लिम युवाओं में से दो, आरिफ माजिद और सलीम टांकी ने पिछले दिनों अपने परिजनों से संपर्क कर उम्मा की स्थापना के लिए जिहाद करने की पुष्टि की है। उन्होंने मजहब के नाम पर अपनी कुर्बानी के बदले पूरे परिवार को जन्नत नसीब होने का भरोसा दिलाया है। इस मानसिकता को मुट्ठी भर भटके युवाओं का फितूर कहकर उसकी अनदेखी करना सभ्य समाज को खतरे में डालना है। कटु सत्य है कि मजहबी जुनून का यह जहर तेजी से दुनिया भर में पसर रहा है और उसकी आगोश में अपने आप को बुद्धिजीवी और प्रगतिशील कहने वाले मुस्लिम भी हैं।
विगत शुक्रवार को अमरनाथ यात्रा के मुख्य आधार शिविर बालटाल पर कहर टूटा। यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं थी, बल्कि मानव निर्मित त्रासदी थी। लंगर वालों और घोड़े वालों के बीच हुए तथाकथित संघर्ष में साठ से अधिक टेंटों में आग लगा दी गई, सामान लूट लिए गए और तीर्थयात्रियों को अपमानित कर मारापीटा गया। दर्जनों घायल हो गए, जिनमें कई सुरक्षाकर्मी भी हैं। पीड़ितों के अनुसार घोड़े वालों के समर्थन में नारे लगाते आए शरारती तत्त्वों के हुजुम ने टेंटों में सोए हुए लोगों को भी उठाकर पीटा। बहुत से तीर्थयात्रियों ने सेना की मदद से अपनी जान और सम्मान की रक्षा की और जिन तक सैनिक सहायता नहीं पहुंच सकी, वे मजहबी जुनून के शिकार बने।
दिल्ली और देश के अन्य भागों में बहुसंस्करण वाले एक प्रमुख समाचार पत्र को छोड़कर बाकी मीडिया ने इस बड़ी घटना पर चुप्पी साध ली। कल्पना कीजिए यदि मुट्ठी भर हज यात्रियों के साथ कहीं ऐसी घटना हो जाती तो न केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में बवाल मच जाता। यह दोहरा मापदंड क्यों? क्या सेकुलरिज्म का अर्थ यह है कि हिंदुओं को छोड़कर बाकी सभी समुदायों के मजहबी अधिकारों की ही चिंता की जाए?