Punjab Kesari 2020-03-13

येस बैंक को किसने मारा?

देश का एक और बैंक- येस बैंक गलत कारणों से सार्वजनिक विमर्श में है। केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने समय रहते इस बैंक को अपने नियंत्रण लेकर जमाकर्ताओं का पैसा न केवल डूबने से बचा लिया, साथ ही भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जनता का विश्वास बनाए रखा है। यही नहीं, खाताधारकों और निवेशकों के गाढ़ी कमाई का बंदरबांट कर एक बार विदेश भाग चुके येस बैंक के सह-संस्थापक राणा कपूर को बहाने से देश बुलाकर गिरफ्तार कर लिया। यक्ष प्रश्न है कि आखिर देश के चौथे सबसे बड़े निजी बैंक के रूप में स्थापित- येस बैंक इस स्थिति में क्यों पहुंचा? क्या यह सार्वजनिक उपक्रम बनाम निजी क्षेत्र से संबंधित मामला है?
Punjab Kesari 2020-02-21

विश्व में बढ़ती भारत और भारतीयता की धमक

आखिर इतिहास कैसे करवट लेता है?- इसका प्रत्यक्ष और हालिया उदाहरण भारत से मीलों दूर यूनाइडेट किंगडम के राजनीतिक घटनाक्रम में मिलता है। ब्रिटेन में प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के बाद वहां के तीसरे और चौथे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति- न केवल भारतीय मूल के है, अपितु वैदिक सनातन संस्कृति का अंश होने पर गौरवांवित भी अनुभव करते है। 47 वर्षीय प्रीति पटेल जहां 2019 से ब्रिटेन में गृह मंत्रालय संभाल रही हैं, तो वही 39 वर्षीय ऋषि सुनाक को गत दिनों ही महत्वपूर्ण वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसके अतिरिक्त, 52 वर्षीय और आगरा में जन्मे आलोक शर्मा भी ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ा रहे है।
Punjab Kesari 2020-02-14

दिल्ली विधानसभा चुनाव:- परिणाम विकास प्रेरित या सांप्रदायिक?

दिल्ली विधानसभा चुनाव क्या विकास के मुद्दों पर ही लड़ा गया या सांप्रदायिक आधार पर? इस प्रश्न का उत्तर- हां और ना दोनों में है। इस चुनाव की सच्चाई यह है कि दिल्ली के मुसलमानों ने सांप्रदायिक आधार पर एकजुट होकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हराने के लिए वोट दिया। इसके विपरीत, हिंदू मतदाताओं के एक वर्ग ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उनके "नए व्यक्तित्व" और उनकी सरकार की लोकलुभावन नीतियों (बिजली, पानी सहित) के कारण फिर से चुना। दिल्ली में कुल 1.48 करोड़ मतदाताओं में 12 प्रतिशत- लगभग 18 लाख से अधिक मुस्लिम मतदाता है। माना जाता है कि इस चुनाव में 90 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मतदाताओं ने "आप" को वोट दिया। शाहीनबाग- जोकि चुनाव से पहले ही इस्लामी पहचान व अस्मिता का प्रतीक बन चुका था, जहां असम को भारत से काटने जैसी राष्ट्रविरोधी योजनाओं की रूपरेखा खींची गई- वहां से (ओखला सीट) "आप" प्रत्याशी मोहम्मद अमानातुल्ला को एकतरफा 66 प्रतिशत मत प्राप्त हुआ और वोट-अंतर के संदर्भ में दूसरी सबसे बड़ी जीत दर्ज की। सीलमपुर, मटियामहल, चांदनी चौक, बल्लीमरान, बाबरपुर और मुस्तफाबाद जैसे मुस्लिम प्रभुत्व वाली सीट- जहां मुस्लिम आबादी 30-70 प्रतिशत के बीच है- वहां भी "आप" प्रत्याशियों ने 53 से 75 प्रतिशत मतों के साथ एकतरफा विजय प्राप्त की।
Punjab Kesari 2020-01-31

रजनीकांत पर गुस्सा क्यों?

देश के लोकप्रिय अभिनेताओं में से एक और "थलाइवा" नाम से विख्यात- रजनीकांत (शिवाजीराव गायकवाड़) इन दिनों सुर्खियों में है। पिछले 45 वर्षों से दक्षिण भारतीय फिल्मों के साथ हिंदी सिनेमा में भी अपने दमदार अभिनय और संवाद के कारण वे देश-विदेश में बसे अपने करोड़ों प्रशंसकों के दिलों पर राज कर रहे है। फिर ऐसा क्या हुआ कि अपनी कर्मभूमि तमिलनाडु में एक वर्ग उनका न केवल विरोध कर रहा है, अपितु उनसे नाराज भी हो गया है? इसका संबंध प्रसिद्ध तमिल साप्ताहिक पत्रिका "तुगलक" की 50वीं वर्षगांठ पर 14 जनवरी को आयोजित वह कार्यक्रम है, जिसमें रजनीकांत ने कहा था- "तमिलनाडु के सेलम में एक रैली के दौरान पेरियार (इरोड वेंकट रामासामी नायकर) ने श्रीरामचंद्र और सीता की निर्वस्त्र मूर्तियों का जूतों की माला के साथ जुलूस निकाला था। किसी ने ये ख़बर नहीं छापी थी, किंतु चो रामास्वामी (तुगलक पत्रिका के संस्थापक और तत्कालीन संपादक) ने इसकी कड़ी आलोचना की थी और पत्रिका के मुख्यपृष्ठ पर इसे प्रकाशित किया था।" रजनीकांत के इस वक्तव्य से एकाएक मुख्य विपक्षी दल डीएमके (द्रमुक) और उसके समर्थक संगठन भड़क उठे। उनका कहना है- "रजनीकांत अपने वक्तव्य पर पुनर्विचार करें और झूठ बोलने के लिए माफी मांगे।" इसपर रजनीकांत का कहना है- "मैं अपनी बात से पीछे नहीं हटूंगा, मैं इसे सिद्ध भी कर सकता हूं।"
Punjab Kesari 2020-01-24

लव-जिहाद सच है या झूठ?

गत दिनों कैथोलिक बिशप की सर्वोच्च संस्था "द सायनॉड ऑफ साइरो-मालाबार चर्च" ने केरल में योजनाबद्ध तरीके से ईसाई युवतियों के मतांतरण का मुद्दा उठाया। लगभग उसी कालांतर में पाकिस्तान स्थित सिंध में तीन और नाबालिग हिंदू लड़कियों के अपहरण, जिसमें एक का मतांतरण के बाद जबरन निकाह कर दिया गया। धरातल पर कहने को दोनों मामले भारतीय उपमहाद्वीप के दो अलग हिस्सों से सामने आए है, किंतु इनका आपस में बहुत ही गहरा संबंध है। इन दोनों घटनाओं के पीछे एक ही विषाक्त दर्शन है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 19 जनवरी (रविवार) को केरल स्थित साइरो-मालाबार चर्च के सामूहिक प्रार्थना के दौरान एक परिपत्र को पढ़ा गया। इसमें केरल सहित अन्य राज्यों की ईसाई युवतियों को प्रेमजाल में फंसाने और इस्लामिक स्टेट जैसे खूंखार आतंकवादी संगठनों में भेजे जाने के खिलाफ चेतावनी थी। इससे कुछ दिन पहले ही "द सायनॉड ऑफ साइरो-मालाबार चर्च" के कार्डिनल जॉर्ज एलनचेरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में भी राज्य पुलिस पर "लव-जिहाद" के मामलों पर ठोस कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया था। जैसे ही लव-जिहाद का मामला पुन: विमर्श में आया, एकाएक केरल की वामपंथी सरकार ने आरोपों का खंडन कर दिया।
Punjab Kesari 2020-01-10

आखिर क्यों विवादों में रहता है जे.एन.यू.?

देश के सबसे विवादित विश्वविद्यालयों में से एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जे.एन.यू.) पुन: गलत कारणों से चर्चा में है। यह स्थिति तब है, जब भारतीय करदाताओं की गाढ़ी कमाई पर शत-प्रतिशत आश्रित और 8,500 छात्रों से सुसज्जित जे.एन.यू. पर औसतन वार्षिक 556 करोड़ रुपये, अर्थात् प्रति एक छात्र 6.5 लाख रुपये का व्यय होता है। इससे भी बढ़कर, यह संस्था दक्षिण दिल्ली स्थित एक हजार एकड़ की बहुमूल्य भूमि पर निर्मित है और सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त है। जेएनयू में 5 जनवरी को हुई हिंसा, जिसमें कई छात्र और प्राध्यापक घायल हो गए- उसके पीछे शुल्क वृद्धि विरोधी वह छात्र-आंदोलन है, जिसमें वामपंथियों द्वारा संचालित जेएनयू छात्रसंघ शनिवार (4 जनवरी) को परीक्षा का बहिष्कार करने हेतु विश्वविद्यालय के "सर्वर रूम" को नुकसान पहुंचाते हुए उसे ठप कर देता है। इस दौरान वहां उपस्थित सुरक्षाकर्मियों से मारपीट भी की जाती है। पुलिस ने इस संबंध में छात्रसंघ अध्यक्ष के खिलाफ सहित कुल तीन प्राथमिकियां दर्ज की है।
Punjab Kesari 2020-01-03

"अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" पर यह कैसा दोहरा मापदंड?

विगत कई वर्षों से देश में बार-बार "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" और "असहमति के अधिकार" का मुद्दा विपक्ष द्वारा उठाया जा रहा है। क्या मोदी सरकार में देश के भीतर ऐसा वातावरण बन गया है, जिसमें अन्य विचारों के प्रति असहिष्णुता बढ़ गई है? नववर्ष 2020 के मेरे पहले कॉलम में इस प्रश्न का जन्म केरल की उस घटना के गर्भ से हुआ है, जिसमें राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को अपनी राय रखने से मार्क्सवादी इतिहासकार इरफान हबीब ने न केवल रोकने का प्रयास किया, अपितु आरिफ तक पहुंचने की कोशिश में उन्होंने सुरक्षाकर्मियों से धक्का-मुक्की तक भी कर डाली। विडंबना देखिए कि देश का जो वर्ग वर्ष 2014 से उपरोक्त संवैधानिक मूल्यों के तथाकथित हनन को मुद्दा बनाकर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहा है, वह केरल के मामले में चुप है और इसके विरुद्ध कोई आंदोलन भी नहीं कर रहे है। क्या केरल का घटनाक्रम असहिष्णुता के साथ "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" और "असहमति के अधिकार" पर अघात नहीं है? आखिर इस दोहरे मापदंड के पीछे कौन-सा विचार है?

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