Punjab Kesari 2020-01-24

लव-जिहाद सच है या झूठ?

गत दिनों कैथोलिक बिशप की सर्वोच्च संस्था "द सायनॉड ऑफ साइरो-मालाबार चर्च" ने केरल में योजनाबद्ध तरीके से ईसाई युवतियों के मतांतरण का मुद्दा उठाया। लगभग उसी कालांतर में पाकिस्तान स्थित सिंध में तीन और नाबालिग हिंदू लड़कियों के अपहरण, जिसमें एक का मतांतरण के बाद जबरन निकाह कर दिया गया। धरातल पर कहने को दोनों मामले भारतीय उपमहाद्वीप के दो अलग हिस्सों से सामने आए है, किंतु इनका आपस में बहुत ही गहरा संबंध है। इन दोनों घटनाओं के पीछे एक ही विषाक्त दर्शन है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 19 जनवरी (रविवार) को केरल स्थित साइरो-मालाबार चर्च के सामूहिक प्रार्थना के दौरान एक परिपत्र को पढ़ा गया। इसमें केरल सहित अन्य राज्यों की ईसाई युवतियों को प्रेमजाल में फंसाने और इस्लामिक स्टेट जैसे खूंखार आतंकवादी संगठनों में भेजे जाने के खिलाफ चेतावनी थी। इससे कुछ दिन पहले ही "द सायनॉड ऑफ साइरो-मालाबार चर्च" के कार्डिनल जॉर्ज एलनचेरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में भी राज्य पुलिस पर "लव-जिहाद" के मामलों पर ठोस कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया था। जैसे ही लव-जिहाद का मामला पुन: विमर्श में आया, एकाएक केरल की वामपंथी सरकार ने आरोपों का खंडन कर दिया। केरल के वित्त मंत्री थॉमस ईसाक ने कहा, "बिशप के आरोपों का कोई आधार नहीं है। पूर्व में ऐसे कई आरोप लगाए गए थे, लेकिन सरकारी जांच में इसका कोई आधार नहीं मिला।" इस पृष्ठभूमि में यक्ष प्रश्न है कि क्या केरल में चर्च या किसी ईसाई संगठन ने पहली बार "लव-जिहाद" का मुद्दा उठाया है?- नहीं। लगभग एक दशक पहले 2009 में केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल ने कहा था- "2006-09 के बीच 2,800 से अधिक ईसाई महिलाओं को इस्लाम मतांतरित किया गया था।" हालिया मामले को लेकर भी एक अंग्रेजी दैनिक से बात करते हुए केरल के इसी बिशप काउंसिल के उप-महासचिव वर्गीस वलीक्कट ने कहा- "लव-जिहाद को केवल प्रेम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, इसका एक व्यापक दृष्टिकोण है। सेकुलर राजनीतिक दलों को कम से कम यह स्वीकार करना चाहिए कि लव-जिहाद एक सच है। राज्य का एक समूह कट्टरपंथी हो रहा है, जिसका संबंध वैश्विक इस्लाम से हैं। इनके नाम भले ही अलग-अलग हो, किंतु इनका नेतृत्व करने वालों का उद्देश्य समान हैं। यह एक बड़ी समस्या है, जिसका हम वर्षों से सामना कर रहे हैं। किंतु केरल में पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दल राजनीति के कारण इन मुद्दों पर चर्चा करने से बच रहे है।" ऐसा नहीं कि "लव-जिहाद" की शिकार केवल ईसाई युवतियां ही हो रही है। वास्तव में, सभी "काफिर" युवतियों को भी योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया जा रहा है। विडंबना देखिए कि केरल की वर्तमान वामपंथी सरकार जिस "लव-जिहाद" को आधारहीन बता रही है, उसी के वरिष्ठ नेता वी.एस. अच्युतानंदन ने जुलाई 2010 में बतौर केरल के मुख्यमंत्री दिल्ली में प्रेसवार्ता करते हुए कहा था- "समूचे केरल के इस्लामीकरण की साजिश चल रही है। वहां सुनियोजित तरीके से हिंदू लड़कियों के साथ मुस्लिम लड़कों के निकाह करने का षड्यंत्र चलाया जा रहा है।" केवल भारत या उसके किसी एक क्षेत्र तक "लव-जिहाद" सीमित नहीं है। विश्व के सबसे संपन्न, विकसित और प्रगतिशील देश- ब्रिटेन भी इससे अछूता नहीं है। वर्ष 2018 में ब्रिटेन स्थित एक सिख संगठन ने दावा किया था कि पाकिस्तानी मूल के मुस्लिम, बीते 50 वर्षों से भारतीय मूल की सिख युवतियों का यौन-शोषण कर रहे है। इनमें कई युवतियों को अपने प्यार के जाल में फंसाकर पहले उनका बलात्कार किया गया और फिर उन्हे परिवार के अन्य सदस्यों के समक्ष भी परोस दिया। वहां ईसाई युवतियां भी दशकों से जिहादियों के निशाने पर है। रॉकडैल और रॉदरहैम में युवतियों (नाबालिग सहित) का यौन उत्पीड़न- इसका उदाहरण है, जिसमें पाकिस्तानी और अफगानी मूल के मुस्लिम दोषी पाए गए थे। ब्रिटेन में लेबर पार्टी की नेता और पूर्व सांसद सारहा चैंपियन इन मामलों को राष्ट्रीय स्तर पर उठा चुकी है। "लव-जिहाद" की पृष्ठभूमि उस विषैले दर्शन में निहित है, जिसमें विश्व को "मोमिन" और "काफिर" के बीच बांटा गया है। इस जहरीले चिंतन के अनुसार, प्रत्येक सच्चे अनुयायी का यह मजहबी कर्तव्य है कि वो काफिरों की झूठी पूजा-पद्धति को नष्ट कर तलवार, छल, फरेब और प्रलोभन के माध्यम से उन्हे मतांतरण के लिए प्रेरित करें या फिर मौत के घाट उतार दें- चाहे इसके लिए अपनी जान की बाजी ही क्यों न लगानी पड़े। इसी मानसिकता ने मोहम्मद बिन कासिम, मो.गजनवी, गौरी, तैमूर, बाबर, अलाउद्दीन खिलजी आदि कई विदेशी आक्रांताओं को भारत पर आक्रमण के लिए प्रेरित किया। सच तो यह है कि 1,400 वर्ष पहले जन्मे इस्लाम का वर्तमान स्वरूप आज हम देख रहे है, जिसमें विश्व की कुल आबादी 750 करोड़ में से इस्लाम अनुयायियों की जनसंख्या 180 करोड़ है और दुनिया में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, अरब, ईरान सहित 50 से अधिक घोषित इस्लामी राष्ट्र या मुस्लिम बहुल देश है- वह लगभग जिहाद के कारण ही संभव हुआ है। इसी जिहाद ने 70 वर्षों में पाकिस्तान की जनसंख्याकीय को शत-प्रतिशत इस्लाम बहुल कर दिया है। क्या यह सत्य नहीं कि विभाजन के समय जिस पाकिस्तान की कुल जनसंख्या में 15-16 प्रतिशत आबादी हिंदू, सिख और जैन आदि अनुयायियों की थी, वह आज एक प्रतिशत रह गए है? यही शेष गैर-मुस्लिम अब भी जिहाद का शिकार हो रहे है। ताजा मामला सिंध के जैकोबाबाद का है, जहां महक कुमारी नाम की एक हिंदू नाबालिग 15 जनवरी को एकाएक गायब हो गई। तीन दिन बाद एक वीडियो के माध्यम से खुलासा हुआ कि महक का इस्लाम में मतांतरण के बाद अली रज़ा से निकाह करा दिया गया। बकौल मीडिया रिपोर्ट, इस युवक की पहले से दो पत्नियां और चार बच्चे हैं। महक के अपहरण से एक दिन पहले ही दो हिंदू लड़कियों को भी सिंध स्थित थारपारकर के उमर गांव से अगवा कर लिया गया था। इस तरह की दर्जनों घटनाओं से परेशान होकर स्थानीय हिंदुओं ने पाकिस्तान सरकार को चेतावनी दी है कि यदि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की गई, तो वे पा