Dainik Jagran 2014-07-30

जिहाद को मिलता मजहबी बौद्धिक ढाल

संयुक्त राष्ट्र और दुनिया भर के देशों की अपील को ठुकराते हुए फिलीस्तीन के आतंकी सुन्नी संगठन ‘हमास’ ने ईद के पवित्र दिन भी बेकसूर लोगों के खून बहाए। उधर इजराइल भी अपनी संप्रभुता और अस्तित्व को बनाए रखने के लिए ‘ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज’ को जारी रखने पर विवश है। दूसरी ओर इराक और सीरिया में सक्रिय सुन्नी आतंकवादी संगठन ‘इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड द लेवेंट’ (आईएसआईएल) के नेतृत्व में कथित इस्लामी साम्राज्य की पुनस्र्थापना के लिए दुनिया भर के देशों से मुस्लिम युवा हिजरा कर रहे हैं। मई महीने में भारत के कल्याण शहर से इराक के मोसूल कूच कर चुके चार मुस्लिम युवाओं में से दो, आरिफ माजिद और सलीम टांकी ने पिछले दिनों अपने परिजनों से संपर्क कर उम्मा की स्थापना के लिए जिहाद करने की पुष्टि की है। उन्होंने मजहब के नाम पर अपनी कुर्बानी के बदले पूरे परिवार को जन्नत नसीब होने का भरोसा दिलाया है। इस मानसिकता को मुट्ठी भर भटके युवाओं का फितूर कहकर उसकी अनदेखी करना सभ्य समाज को खतरे में डालना है। कटु सत्य है कि मजहबी जुनून का यह जहर तेजी से दुनिया भर में पसर रहा है और उसकी आगोश में अपने आप को बुद्धिजीवी और प्रगतिशील कहने वाले मुस्लिम भी हैं।
Dainik Jagran 2014-07-09

विश्व शांति को नई चुनौती

गृहयुद्ध से जूझ रहे इराक के घटनाक्रम न केवल पश्चिम एशिया, बल्कि पूरी दुनिया के सामने नई चुनौती है। इराक और सीरिया में सक्रिय सुन्नी आतंकवादी संगठन ‘इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड द लेवेंट’ (आईएसआईएल) ने इराक और सीरिया में अपने कब्जे वाले क्षेत्र को खिलाफत अर्थात इस्लामिक स्टेट घोषित कर अपने मुखिया अबू बकर अल बगदादी को खलीफा बताते हुए उसे दुनिया के मुसलमानों का नेता भी घोषित किया है। उथलपुथल से जूझ रहे इराक पर कुर्द, शिया और सुन्नी बहुल इलाकों के रूप में तीन टुकड़ों में बंटने का खतरा मंडरा रहा है। आईएसआईएल द्वारा इस्लामिक स्टेट की घोषणा के बाद उत्तरी इराक में पूर्ण स्वतंत्र कुर्दिष स्टेट बनाने को लेकर घमासान मचा है। आईएसआईएल की बढ़ती शक्ति और उसका एजेंडा विश्व शांति के लिए अलग खतरा है।
Dainik Jagran 2014-06-18

इस्लाम बनाम इस्लाम

दुनियाभर में चल रही हिंसक घटनाएं क्या मध्यकालीन बर्बर युग की दस्तक हैं? इराक की ‘इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड लेवैंट’ (आइएसआइएल) नामक सुन्नी आतंकी संगठन के आतंकियों के द्वारा 1700 इराकी जवानों को मौत के घाट उतारना, केन्या के पेकटोनी शहर में सोमाली आतंकियों द्वारा 48 लोगों की बर्बर हत्या, अफगानिस्तान में वोट देने की सजा के तौर पर तालिबानियों द्वारा 11 अफगानी नागरिकों की उंगलियां काटना, केन्या में अल षबाब द्वारा 48 लोगों की हत्या, पड़ोसी मुल्क बंगलादेष में बांग्लाभाषियों और उर्दू भाषियों के बीच हिंसा में 10 से अधिक की मौत, पाकिस्तान के कराची एअरपोर्ट पर हुआ आतंकी हमला और नाइजेरिया में बोको हरम के द्वारा 200 से अधिक छात्राओं का अपहरण, क्या रेखांकित करता है? इन आतंकी हमलों में मरने वाले अधिकांश किस मजहब के हैं? क्या यह सत्य नहीं कि मजहब के नाम पर हिंसा करने वाले और उस हिंसा के बदकिस्मत शिकार एक ही मजहब- इस्लाम के हैं?
New Indian Express 2013-11-16

The blackmail before partition

Samajwadi Party leader Mulayam Singh is the latest politician to absolve the Muslims from the responsibility of having forced a bloody partition of the country in 1947. Of course Mulayam’s assertion is a part of party propaganda in an election season. And propaganda cannot be a substitute for history. A recall is in order to understand the context in which partition of India became inevitable. After the demise of Aurangzeb in 1707, the Mughal empire started disintegrating. The power vacuum in Delhi was filled by valiant Marathas and the Mughal emperor became their pensioner. Sikhs in Punjab, Marathas in Central India, Jats and Rajputs in the west emerged as new power centres. In 1803, the Marathas lost Delhi’s control to the East India Company after a fierce battle at Noida (then Patparganj) near Delhi and the Mughal emperor then onwards became a pensioner of the British. Muslims naturally resented their newly defined subservient status and a section of them decided to join hands with the Hindus, who too hated the British rule. The result was the first war of independence of 1857.
New Indian Express 2013-08-24

No let-up in Islam vs Islam

After a bloodbath in Egypt, which claimed nearly a thousand lives, a much worse carnage in Syria has hit the headlines where as many as 1,300 people are said to have been gassed to death. If confirmed, it would be the world’s worst chemical weapon attack in decades. While the details of this gory incident are not available at the time of writing there is little doubt that the massacre has its origins in the age-old Shia-Sunni conflict. Approximately three-fourths of Syria are Sunni, but its government is predominantly Alawi, a Shia sect that makes up less than 15 per cent of the population, The bloody conflict between the two warring sects of Islam is pretty old. In the 1980s, thousands were killed in clashes between the two.





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