Punjab Kesari 2021-06-16

खतरे में चीन की विश्वसनीयता

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की स्थिति कितनी खराब है, इसका अंदाजा हाल के वैश्विक घटनाक्रम से सहज लग जाता है। दुनिया की सात सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले समूह जी-7 ने कोविड-19 संक्रमण उत्पत्ति संबंधित जांच में पारदर्शिता लाने का आह्वान किया है। वही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपना पुराना रूख बदलते हुए चीन से कोरोनावायरस के स्रोत ढूंढने की जांच में सहयोग करने को कहा है। इसपर चीन की सख्त प्रतिक्रिया भी आई है। यह अकाट्य सत्य है कि समस्त विश्व में कई रूपों में तबाही मचा रहा कोविड-19 अपनी उत्पत्ति के डेढ़ वर्ष बाद भी एक रहस्य बना हुआ है। क्या कोविड-19 एक प्राकृतिक वायरस है या इसकी उत्पत्ति चीन में मानवीय भूल या फिर किसी विशेष उद्देश्य के लिए हुई है? अबतक जो शोध सामने आए है, उसके अनुसार- इस संक्रमण का पहला मामला चीन के वुहान में ही सामने आया था। वुहान वही चीनी नगर है, जहां उच्च सुरक्षा वाला अनुसंधान केंद्र- "इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी" स्थित है और उसी हुनान सी-फूड बाजार से सटा हुआ है, जहां सबसे पहले कोरोना मामलों का विस्फोट हुआ था। कालांतर में यह वायरस वुहान से पूरी दुनिया में फैल गया और अगले 18 माह में अबतक लगभग 18 करोड़ लोग संक्रमित कर चुका है, जिसमें 38 लाख से अधिक पीड़ित कालकवलित हो चुके है। यही नहीं, इस संक्रमण जनित प्रतिकूल परिस्थितियों (लॉकडाउन सहित) से विश्व की बड़ी-बड़ी विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं देखते ही देखते धराशायी हो गई। विश्व का सबसे अत्याधुनिक, विकसित और संपन्न राष्ट्र अमेरिका में कोविड-19 कहर बनकर टूटा है। यहां सर्वाधिक 3.5 करोड़ लोग संक्रमित हुए है, जिसमें 6 लाख से अधिक पीड़ित दम तोड़ चुके है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसी वर्ष मार्च में कोरोना की उत्पत्ति को लेकर जांच एजेंसियों को रिपोर्ट तैयार करने को कहा था, जिसके सार्वजनिक होने के बाद बिडेन ने 90 दिनों में जांच को पूरा करने का आदेश दिया है। अमेरिकी समाचारपत्र "वॉल स्ट्रीट जर्नल" ने इस गोपनीय रिपोर्ट के हवाले से यह दावा किया है कि वुहान लैब के कई शोधकर्ता नवंबर 2019 या उससे पहले बीमार हो गए थे और उन्हें सामान्य सर्दी, खांसी, जुकाम और बुखार जैसे लक्षण थे। जबकि चीन ने दिसंबर 2019 में कोरोना का पहला मामला सामने आने का दावा किया है। केवल कोविड-19 उत्पत्ति की आशंका ही चीन के गले की फांस नहीं बनी हुई है। मानवाधिकार उल्लंघन मामले में जी-7 समूह द्वारा चीन को घेरने के बाद अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन नाटो ने इस साम्यवादी की विस्तारवादी नीतियों को लेकर भी सख्त रुख अपनाया है। जहां जीन-7 ने चीन के वैश्विक अभियान (वन बेल्ट वन रोड सहित) को चुनौती देने हेतु एक आधारभूत ढांचा योजना बनाने की घोषणा की है, वही नाटो ने चीन को वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा बताया है। साम्राज्यवादी चीन द्वारा अपने पड़ोसी देशों के भूखंडों को कब्जाना, शिन्जियांग प्रांत में मुसलमानों का प्रायोजित सांस्कृतिक संहार, तिब्बत में बौद्ध अनुयायियों का "सिनीकरण" अभियान, ताइवान पर चीनी हेकड़ी और हॉन्गकॉन्ग में असहमति का दमन किसी से छिपा नहीं है। इसी वैश्विक घटनाक्रम के बीच भारत में चीन के राजदूत का एक वक्तव्य सामने आया है। वे कहते हैं, "दोनों देशों को एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए और विरोध करने से बचना चाहिए।" 60 वर्ष पहले "हिंदी-चीनी भाई-भाई" के नाम पर छल, वर्ष 2017 में डोकलाम और गत वर्ष गलवान प्रकरण में चीनी कुटिलता का अनुभव कर चुके भारत को क्या इस वक्तव्य के बाद चीन के प्रति निश्चिंत हो जाना चाहिए? विगत 8 जून को भारत स्थित चीनी राजदूत सुन वेइतोंग ने भारतीय युवा संघ और कुछ कॉलेज के शिक्षकों व छात्रों के साथ ऑनलाइन वीडियो संवाद किया था। वे "चीन का विकास जानें और सहयोग में विश्वास करें" शीर्षक के अंतर्गत भाषण दे रहे थे। तब उन्होंने कहा था, "देशों के बीच मतभेद होना सामान्य बात है। सीमा विवाद एक ऐसा मुद्दा है, जिसे इतिहास द्वारा छोड़ा गया है और इसे समुचित तरीके से सुलझाया जाना चाहिए। बीजिंग बातचीत और परामर्श के माध्यम से सीमा विवादों को सुलझाने में विश्वास करता है। दोनों पक्षों को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए, एक-दूसरे के साथ समान व्यवहार करना चाहिए, बातचीत और परामर्श करना चाहिए और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए मतभेदों को ठीक से संबोधित करना चाहिए।" क्या इन लच्छेदार बातों के पीछे वामपंथी चीन का वास्तविक विस्तारवादी चेहरा छिपा रह सकता है?- नहीं। अधिनायकवादी चीन की कथनी और करनी में भारी अंतर कितना है, यह इस बात स्पष्ट है कि जब भारत में चीनी राजदूत भारतीय छात्रों से संवाद करते हुए "आपसी सहयोग" पर प्रवचन दे रहे थे, तब लगभग उसी कालांतर में सीमा पर चीन के 21-22 आधुनिक लड़ाकू विमान अभ्यास के नाम पर अपनी सामरिक शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। यही नहीं, चीनी राजदूत के संवाद के दो दिन पश्चात पश्चिम बंगाल से सटी बांग्लादेश सीमा से भारत में घुसपैठ का प्रयास कर रहे चीनी नागरिक हान जुनवई को सुरक्षाबलों ने गिरफ्तार किया है। जांच में स्पष्ट हुआ है कि वह चीनी जासूस है और 2010 से कई बार भारत आ चुका है। साम्यवादी चीन का इतिहास उसके कपट से भरे साम्राज्यवादी चरित्र की व्याख्या करता है। जब 1950 में तिब्बत को चीन अपना निवाला बना रहा था, तब इस घटना पर मूकदर्शक बना रहा तत्कालीन भारतीय नेतृत्व "हिंदी-चीनी भाई-भाई" नारे के शोर में भारतीय जमीन पर नजर गढ़ाए बैठे चीन की कुटिलता के खिलाफ अनेकों राष्ट्रवादियों की चेतावनियों और सीमा पर चीनी सैनिकों की आहट को सुन नहीं पाया। परिणामस्वरूप, "हिंदी-चीनी भाई-भाई" नारे के गूंज में आक्रमणकारी चीन ने वर्ष 1962 में हमला कर दिया, जिसमें न केवल हमारी शर्मनाक पराजय हुई, साथ ही देश की हजारों वर्ग कि.मी. भूमि पर चीन का कब्जा भी हो गया। इसके अगले पांच दशकों तक चीन हमारी अति-रक्षात्मक नीति का लाभ उठाकर भारतीय भूखंडों पर अतिक्रमण करने का प्रयास करता रहा। 2013 में लद्दाख में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद 2017 का डोकलाम प्रकरण और 2020 का गलवान घाटी घटनाक्रम- इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। आखिर विगत वर्षों में ऐसा क्या हुआ है, जिसने चीन को भारत के साथ "आपसी सहयोग" की डुगडुगी बजाने पर विवश कर दिया। इसके कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कारण है। इस बार भारतीय नेतृत्व "भय बिनु होय न प्रीति" परंपरा के माध्यम से चीन को समझाने में सफल हो गया है कि कि वर्तमान भारत 1962 की पराजित और अपमानजनक मानसिकता से मीलों आगे निकल चुका है और वह अपनी सीमा, एकता और अखंडता की रक्षा हेतु पहले से कहीं अधिक तत्पर, स्वाभिमानी और किसी भी अनुचित क्रिया का घातक प्रतिकार करने हेतु स्वतंत्र है। इसका आभास चीनी सत्ता-अधिष्ठान को डोकलाम विवाद और गलवान घाटी प्रकरण में भारत की प्रतिक्रिया से भलीभांति हो भी गया है। भारत को लेकर चीन की कुनीति स्पष्ट है। जिसके अनुसार, जिसपर चीन का दावा है या फिर उसका कब्जा है, उस पर वह सशर्त वार्ता के लिए तैयार तो है, किंतु साथ ही चाहता है कि भारत धारा 370-35ए को बहाल करें, देश में निर्वासित तिब्बतियों को सुविधाएं देना बंद करें और अरुणाचल प्रदेश से अपना प्राकृतिक संबंध नकार दें। चीन यह भी दावा करता है कि आतंकवाद को जड़ से समाप्त के प्रयासों में वह गंभीर है, किंतु जब पाकिस्तान में बैठे हाफिज सईद, मसूद अजहर और सैयद सलाउद्दीन जैसे इस्लामी आतंकवादी पर कार्रवाई की परीक्षा आती है, तो वह उसमें अडंगा डाल देता है। इस प्रकार का "सहयोग" चीन, भारत के साथ वर्षों से कर रहा है। कोविड-19 की उत्पत्ति संबंधी जांच को लेकर चीन की बौखलाहट नई नहीं है। साम्यवादी चीन के इस विकृत चरित्र की जड़ उसकी इस मानसिकता में मिलती है, जिसमें वह स्वयं को विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता मानने का दावा करता है और उसके अनुरूप शेष विश्व को चलाने का सपना देखता और भूखंड कब्जाता है। "चतुर्भुज सुरक्षा संवाद" (क्वाड)- जिसका सदस्य भारत भी है, के बाद हाल ही में जी-7 और नाटो की साम्राज्यवाद विरोधी लामबंदी से चीन बहुत असहज है। इस पृष्ठभूमि में भारत से चीन द्वारा "आपसी सहयोग" का उपदेश केवल उसकी एक तात्कालिक रणनीति का हिस्सा है।