भारतीय अर्थव्यवस्था, जोकि महामारी कोविड-19 के कारण अन्य देशों की आर्थिकी की भांति ध्वस्त हो गई थी- क्या वह पटरी पर लौटने लगी है? इस संबंध में उद्योग जगत से लेकर मूडीज-फिच जैसी वैश्विक रेटिंग संस्थाओं और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे प्रमाणित वैश्विक संगठनों ने पिछले दिनों में अपनी जो रिपोर्ट प्रस्तुत की, उसमें भारत की आगामी स्थिति न केवल अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक सकारात्मक बताई गई है, अपितु अधिकांश ने वित्तवर्ष 2021-22 में देश की भावी विकास दर- दहाई अंक में रहने की संभावना जताई है। आखिर वे क्या कारण है, जिनसे संकेत मिलते है कि भारतीय आर्थिकी कोरोनावायरस के चंगुल से बाहर आने लगी है? इसके कई कारण है- जिसमें स्वदेशी कोविड-19 टीकाकरण मुख्य भूमिका निभा रहा है। कोरोनाकाल में देश की आर्थिकी लगातर दो तिमाही में शून्य से 24 प्रतिशत नीचे गिर गई थी। किंतु मोदी सरकार द्वारा कई आर्थिक प्रोत्साहन पैकेजों की घोषणा और कोविड-19 जनित संकट से निपटने हेतु समयोचित नीतियों के कारण ही अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के आंकड़े में आर्थिक वृद्धि दर सकारात्मक अंक 0.4 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसमें सेवा क्षेत्र ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस क्षेत्र का कारोबारी सूचकांक (पीएमआई) फरवरी माह में 55.3 अंक रहा, जो जनवरी में 52.8 था। यह लगातार पांचवां महीना है, जब सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में वृद्धि हो रही है। इसी तरह, भारतीय विनिर्माण खरीद प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) 57.5 अंक रहा। अर्थव्यवस्था संबंधित पीएमआई में 50 अंक से ऊपर रहने का अर्थ है कि आर्थिक क्षेत्रों में विस्तार हो रहा है। सरकार सेवा-विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन को अधिक बढ़ावा देने हेतु 13 प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के अंतर्गत अगले पांच वर्षों 1.97 लाख करोड़ रुपये व्यय की घोषणा कर चुकी है। बात यदि "वस्तु एवं सेवा कर" अर्थात्- जीएसटी संग्रह की करें, तो फरवरी में कोरोना महामारी के बीच यह लगातार पांचवें महीने एक लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया। फरवरी में जीएसटी राजस्व 1.13 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा। जीएसटी संग्रह में सुधार और उसका फिर से लगातार बढ़ना- अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है। ऑटोमोबाइल क्षेत्र भी अपनी खोई चमक वापस पाने लगा है। फरवरी माह में भी वाहन कंपनियों ने बिक्री में दहाई अंकों में बढ़ोतरी दर्ज की है। जहां मारुति सुजुकी इंडिया ने पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष फरवरी में 11.8 प्रतिशत अधिक वाहनों की बिक्री की, वही टाटा मोटर्स का यह आंकड़ा 51 प्रतिशत, हुंडई मोटर इंडिया के लिए 26.4 प्रतिशत रहा। विश्व की बड़ी मोबाइल निर्माता कंपनियां (एप्पल और सैमसंग सहित) भारत में कारखाना खोलकर न केवल अपना उत्पादन बढ़ा रही है, अपितु रोजगार के नए अवसर भी सृजन कर रही है। एप्पल के लिए फोन बनाने वाली ताइवान की व्रिस्टॉन ने बेंगलुरु स्थित कंपनी के नारासापुरा प्लांट में नए आईफोन का उत्पादन शुरू कर दिया है। इस संयंत्र में कंपनी की लगभग 10 हजार कर्मचारियों को रखने की योजना है। शहरी बेरोजगारी घटने लगी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, फरवरी माह में शहरी बेरोजगारी दर घटकर 6.9 प्रतिशत हो गई, जो जनवरी 8.08 प्रतिशत थी। फरवरी का यह आंकड़ा विगत दो वर्षों में सबसे कम है। अपेक्षा है कि आगामी दिनों में ग्रामीण क्षेत्र की बेरोजगारी दर में गिरावट आएगी। अभी गांवों में बेरोजगारी बढ़ने का मुख्य कारण गत वर्ष देशवासियों को कोविड-19 के प्रकोप से बचाने हेतु लगाया गया लॉकडाउन था, जिसके बाद मजदूर-श्रमिक नगरों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पलायन कर गए थे। कहते है कि "संकट अपने साथ कई अवसर लेकर आता है"- यह पंक्तियां भारतीय पर्यटन उद्योग पर उपयुक्त बैठती है। कोरोना संकट (लॉकडाउन सहित) से पर्यटन भी प्रभावित हुआ था। किंतु अब स्थिति बदलने लगी है। अंतरराष्ट्रीय विमानन सेवा सीमित होने का बड़ा लाभ स्थानीय पर्यटन क्षेत्र को मिल रहा है। एक अंग्रेजी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीर स्थित गुलमर्ग के होटलों में 30 अप्रैल तक खाली जगह उपलब्ध नहीं है। यह अलग बात है कि घाटी में इस सकारात्मक स्थिति के पीछे धारा 370-35ए के संवैधानिक क्षरण की बहुत बड़ी भूमिका है। ऐसा नहीं है कि यह सब केवल कोविड-19 काल में सरकार द्वारा लिए गए आपातकालीन आर्थिक नीतियों और योजनाओं का परिणाम है। निसंदेह, इनका सभी फैसलों का अपना महत्व है। किंतु वर्ष 2014 से अबतक भारत में एफडीआई नीति में सुधार, निवेश प्रक्रिया सरल बनाने, उत्पादन व निर्यात आदि बढ़ाने और व्यापारिक गतिविधियों को सुगम करने हेतु जो "मेक इन इंडिया" से लेकर "आत्मनिर्भर भारत" आदि योजनाएं चलाई है, यह उसी मजबूत आधार का संयुक्त परिणाम है कि पिछले 6 वर्षों में सेंसेक्स (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) 25 हजार से दो गुना बढ़कर 50 हजार अंक को पार कर गया। 580.30 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा भंडार के साथ भारत ने रूस को पीछे छोड़ते हुए चौथा स्थान प्राप्त कर लिया। कोरोनाकाल में भारत की अर्थव्यवस्था किस प्रकार मजबूत होकर उभर रही है, इसका खुलासा संस्था- "वैश्विक आर्थिक सहयोग और विकास संगठन" (ओ.ई.सी.डी.) की रिपोर्ट ने भी किया है। इसने 9 मार्च को अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए वित्तवर्ष 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जी-20 देशों में सबसे अधिक 12.6 प्रतिशत विकास दर रहने का अनुमान व्यक्त किया है, जबकि वैश्विक आर्थिकी का अनुमान 5.6 प्रतिशत जताया है। ओ.ई.सी.डी. के अनुसार, भारत और कुछ अन्य देशों के घोषित वित्तीय उपायों से ही 2021-22 में विश्व अर्थव्यवस्था में वृद्धि को प्रोत्साहन मिलेगा। यह अनुमान और भारतीय आर्थिकी में सुधार के संकेत देश में वामपंथी-जिहादी कुनबे और स्वघोषित सेकुलरिस्ट जमात द्वारा फैलाए उन अफवाहों को झूठा साबित करता है, जिसने महामारी कोविड-19 के सभी दुष्प्रभावों की अवहेलना करते हुए न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों (नोटबंदी-जीएसटी) और कोरोना लॉकडाउन को कटघरे में खड़ा कर दिया, अपितु प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मोदी सरकार के मूल भारतीय संस्कृति को परिलक्षित करते दृष्टिकोण और प्रखर राष्ट्रवाद के प्रति उनकी राजनीतिक कटिबद्धता को लांछित करने का भी प्रयास किया। भारतीय अर्थव्यवस्था पर हालिया रिपोर्ट जारी करने वाली ओ.ई.सी.डी. वही वैश्विक संस्था है, जिसने दो दशक पहले अपने एक विस्तृत शोध से वामपंथियों (कार्ल मार्क्स, मैक्स वेबर, जॉन गेलब्रेथ और प्रोफेसर राजकृष्ण आदि) के उस रूग्ण नैरेटिव को निरस्त करते हुए स्थापित कर दिया था कि भारतीय संस्कृति, उसके ध्वजावाहक और उसकी मूल जीवन-पद्धति विश्वस्तरीय, शक्तिशाली और महान आर्थिक-मॉडल का निर्माण कर सकती है। ओ.ई.सी.डी. ने 1980-90 के दशक में प्रसिद्ध आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन के नेतृत्व में एक संगोष्ठी का गठन किया था, जिन्हें यह दायित्व सौंपा गया था कि बेल्जियम के बड़े अर्थशास्त्री और इतिहासकार पॉल बैरॉच का भारतीय आर्थिकी के संबंध में शोध, जिसके अंतर्गत उन्होंने भारत को 1750 तक चीन के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बताया था- क्या वह प्रमाणिक रूप से सच था या नहीं। मैडिसन ने गहन शोध के बाद अपनी "विश्व आर्थिक इतिहास- एक सहस्राब्दी परिप्रेक्ष्य" रिपोर्ट में न केवल बैरॉच के अनुसंधान को सही ठहराया, साथ ही यह भी स्थापित किया कि भारत पहली शताब्दी से 15वीं सदी तक वैश्विक आर्थिकी का सिरमौर था और अगले तीन शताब्दी तक भारत और चीन के बीच पहले व दूसरे स्थान पर स्थापित होने की होड़ लगी हुई थी। आज भारत अपनी मूल बहुलतावादी संस्कृति और जीवन-पद्धति के बल पर फिर से उसी स्थान पर पहुंचने हेतु प्रयारसत है। यह ठीक है कि अभी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना शेष है। विगत सात वर्षों से वामपंथी-जिहादी-सेकुलरिस्ट वर्ग द्वारा भारतीय गौरव के पर्याय रूपी उपलब्धियों को विवादित बनाना- उदारहणस्वरूप, भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाना, स्वदेशी कोविड वैक्सीन पर संदेह जताना और भारत की विदेशी निर्भरता को सीमित करने हेतु "आत्मनिर्भर भारत", "मेक-इन-इंडिया" जैसी आर्थिक योजनाओं को उपहास का केंद्र बनाना- केवल राजनीतिक विरोध का परिणाम नहीं है, अपितु यह उनकी भारत और यहां की मूल सनातन परंपराओं के प्रति वैचारिक घृणा और हीन-भावना को प्रत्यक्ष बनाता है।