Dainik Jagran 2021-03-08

क्या पाकिस्तान कभी बदल सकता है?

गत दिनों भारत और पाकिस्तान- दोनों देशों के सैन्य अभियानों के महानिदेशकों के बीच एक महत्वपूर्ण हॉटलाइन बैठक हुई। इसमें तय हुआ कि 24-25 फरवरी 2021 की मध्यरात्रि से 2003 का संघर्ष-विराम समझौता और समय-समय पर दोनों देशों के बीच हुई पुरानी संधियों को फिर से लागू किया जाएगा। यह एक बड़ी खबर थी, जिसके प्रति भारतीय मीडिया लगभग उदासीन रहा और इसे केवल एक सामान्य समाचार तक सीमित रखा। आखिर इसका कारण क्या है? यह घटनाक्रम सच में काफी हैरान करने वाला है, क्योंकि 2016-19 के बीच पाकिस्तान प्रायोजित पठानकोट-उरी-पुलवामा आतंकी हमले और इसपर भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तानी आतंकवादी ठिकानों पर सफल सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के संबंध गर्त में थे। 27 फरवरी 2019 में भारतीय वायुसेना विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को पाकिस्तानी सेना द्वारा पकड़े जाने पर हालात इतने गंभीर हो गए थे कि भारत-पाकिस्तान फिर से युद्ध के मुहाने पर खड़े हो गए। यही नहीं- एक आंकड़े के अनुसार, 2018 से लेकर फरवरी 2021 के बीच नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान 11 हजार से अधिक बार युद्धविराम का उल्लंघन कर चुका है, तो जवाबी कार्रवाई करते हुए भारत ने भी वांछित उत्तर दिया। बकौल पाकिस्तानी सेना, भारतीय सैनिकों ने 2020 में तीन हजार से अधिक बार सीमा पर गोलीबारी की। ऐसा क्या हुआ कि सीमा को अशांत रखने वाला पाकिस्तान अचानक शांति की बात करने लगा? वास्तव में, इसके कई कारण है। पहला- विश्व में इस्लामी कट्टरता, अलगाववाद और आतंकवाद विरोधी वातावरण होना। फ्रांसीसी संसद द्वारा पारित विधेयक इसका उदाहरण है। स्वयं को गैर-अरबी वैश्विक मुस्लिम समाज का अगुवा मानने वाला पाकिस्तान जन्म से जिहाद और इस्लामी कट्टरवाद का एक केंद्र बना हुआ है। इसी कारण पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय संस्थादन फाइनेंशिल एक्शन टॉस्क फोर्स (एफएटीए) "ग्रे" सूची में बरकरार है, जिससे वह बाहर निकलना चाहता है। दूसरा- पाकिस्तान की खस्ताहाल आर्थिक स्थिति। यूं तो महामारी कोविड-19 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है, किंतु इसने पाकिस्तान के लिए "कोढ़ में खुजली" का काम किया है। इसका प्रमाण इसी वर्ष जनवरी में तब देखने को मिल गया था, जब पाकिस्तान द्वारा एक विदेशी कंपनी का बकाया 237 करोड़ पाकिस्तानी रुपये पैसा नहीं चुकाने पर उसका यात्रियों से भरा सार्वजनिक विमान मलेशिया में जब्त कर लिया गया। मामला बाद में सुलझ तो गया, किंतु इससे विश्व में अलग-थलग पड़े पाकिस्तान को और अधिक अपमानित होना पड़ा। कोरोनावायरस से अधिक पाकिस्तान को "चीनी-ऋण" अधिक नुकसान पहुंचा रहा है। वित्तवर्ष 2019-20 में पाकिस्तान का सार्वजनिक ऋण उसके कुल सकल घरेलू उत्पाद- अर्थात् 284 बिलियन डॉलर का 87 प्रतिशत हो गया है, जिसमें बड़ा हिस्सा अकेले चीन का है। पाकिस्तान की इस दयनीय स्थिति का कारण यह है कि उसे अपना पिछला कर्ज उतारने हेतु बार-बार ऋण लेना पड़ रहा है। हाल ही में उसने सऊदी अरब का कर्ज उतारने हेतु चीन से फिर 1.5 बिलियन डॉलर का उधार लिया है। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के आंकड़ों के अनुसार, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के निर्माण के कारण वर्ष 2017 में पाकिस्तान पर चीन का कर्ज 7.2 बिलियन डॉलर था, जो वर्ष 2020 में बढ़कर 30 बिलियन डॉलर हो गया। अनुमान है कि 2024 तक यह 100 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान को चीन का यह कर्ज चुकाने में लगभग 40 वर्ष लगेंगे। तीसरा- 2017 में डोकलाम के बाद 2020-21 में पूर्वी लद्दाख पर चीन के खिलाफ भारत की कूटनीतिक विजय। हाल ही में भारत ने अपनी शर्तों के बल पर चीनी सेना को सीमा से पीछे जाने पर विवश कर दिया। तब चीनी सेना इतनी जल्दी में थी कि उसने पैंगोंग त्सो के दक्षिण तट से अपने 200 से अधिक युद्धक तोपों/टैंक एक ही दिन में पीछे कर लिए। यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि वर्तमान भारतीय नेतृत्व की नीतियों से चीन को संदेश मिल गया कि 1962 की तुलना में भारत अपनी सीमा, एकता और अखंडता की रक्षा हेतु पहले से कहीं अधिक तत्पर और स्वतंत्र है। इसका प्रमाण चीनी सत्ता-अधिष्ठान को गलवान घाटी में सैन्य झड़प के बाद 29-30 अगस्त 2020 को मिल गया था, जब भारतीय सैनिकों ने कैलाश पर्वत श्रृंखला के उस क्षेत्र को फिर से अपने अधिकार में ले लिया- जो 1962 के युद्ध से पहले भारत के अधीन था। यह किसी से छिपा नहीं है कि "इस्लाम-विरोधी" साम्यवादी चीन और "वामपंथ-रहित" इस्लामी पाकिस्तान के बीच अस्वाभाविक गठजोड़ का कारण- इन दोनों देशों का भारत विरोधी एजेंडा है। जहां साम्राज्यवादी चीन अपनी गिद्धदृष्टि भारतीय भूखंडों पर 1950 के दशक से रख रहा है, वही पाकिस्तान का वैचारिक अधिष्ठान उसे भारत विरोधी प्रपंच रचने हेतु उकसाता रहता है। हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान का नाम लिए बिना स्पष्ट रूप से कह दिया था कि कोई देश किसी अन्य आतंकी समर्थक देश के सशस्त्र हमले को विफल करने के लिए "पहले ही हमला" करने हेतु बाध्य हो सकता है। पाकिस्तान और चीन को अपने घोषित भारत-विरोधी लक्ष्यों की पूर्ति हेतु एक-दूसरे की सहायता की अपेक्षा रहती है। धारा 370-35ए के संवैधानिक क्षरण और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित संबंधित भारतीय नेतृत्व के निर्णय को चीन-पाकिस्तान ने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चुनौती दी थी, जो भारतीय कूटनीति के समक्ष विफल हो गया। यह हास्यास्पद ही है कि कश्मीर में मानवाधिकारों की बात करने वाले चीन का स्वयं इस मामले में ट्रैक रिकॉर्ड- शिंजियांग में मुस्लिम शोषण, तिब्बत में बौद्ध-भिक्षु उत्पीड़न, हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र समर्थकों के दमन और ताइवान मामले को लेकर बहुत अधिक बिगड़ा हुआ है, तो पाकिस्तान में हिंदू सहित अन्य अल्पसंख्यकों पर मजहबी अत्याचार सर्विदित है। हाल के वर्षों में चीन के खिलाफ जैसा वर्तमान भारत का रूख रहा है, चाहे वह कूटनीतिक हो, सामरिक हो या फिर आर्थिक- उसमें प्रभावशाली बनकर उभरा है। इसी कालक्रम से संभवत: पाकिस्तानी सत्ता अधिष्ठान को अपनी दुर्बल स्थिति का अनुमान हो गया है। चौथा कारण- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन के चीन विरोधी वक्तव्यों और संबंधित योजनाओं में भी छिपा है। राष्ट्रपति बाइडेन ने सत्ता संभालते ही जिन दो विशेष कार्यदलों का गठन किया है, उनमें एक चीन से संबंधित है। इस दल में केवल अमेरिकी रक्षा विभाग- पेंटागन के अधिकारी हैं। 1989 में साम्यवादी सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका का विश्व पर एक एकध्रुवीय वर्चस्व था, जिसे अब साम्यवादी चीन की ओर से खुली चुनौती मिल रही है। सच तो यह है कि अमेरिका और चीन अपने-अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति हेतु दुनिया को दो खेमों में बांटना चाहते है। क्या पाकिस्तान विश्वासयोग्य है? सच तो यह है कि भारत-पाकिस्तान संकट का मुख्य कारण वह वैचारिक अधिष्ठान है, जो "काफिर-कुफ्र" अवधारणा से प्रेरित है और जिसका अंतिम उद्देश्य खंडित भारत को मौत के घाट उतारना है। इसलिए जब 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मित्रता का संदेश लेकर लाहौर गए, तब बदले में भारत को कारगिल में धोखा मिला। ठीक इसी तरह, जब दिसंबर 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी औचक लाहौर पहुंचे और तत्कांलीन पाकिस्तामनी समकक्ष नवाज शरीफ से भेंट की, तब इसके सप्ताहभर बाद पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला हो गया। ऐसे में भारत को सीमा पर "कुटिल" चीन के साथ "कपटी" पाकिस्तान से सचेत रहना होगा।