Amar Ujala 2020-11-26

"लव-जिहाद" की सच्चाई

क्या "लव-जिहाद" वास्तविकता है या मिथक? यह प्रश्न इसलिए उठ रहा है, क्योंकि गत 24 नवंबर को उत्तरप्रदेश सरकार ने गैरकानूनी मतांतरण संबंधी अध्यादेश पारित कर दिया। मध्यप्रदेश, हरियाणा, असम और कर्नाटक की सरकारों ने भी ऐसा ही कानून लाने निर्णय किया है। प्रस्तावित प्रारूप के अनुसार, बहला-फुसलाकर, प्रलोभन, लालच, बलपूर्वक, झूठ बोलकर हुए मतांतरण को अपराध माना जाएगा और ऐसा करने वाले को 1-10 वर्ष कारावास हो सकती है। यह सभी लोगों पर समान रूप से लागू होगा। जैसे ही इसपर सार्वजनिक विमर्श शुरू हुआ, वैसे ही स्वघोषित सेकुलरिस्टों और वामपंथियों के कुनबे ने इसे सांप्रदायिक और प्रतिगामी बताकर सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कटघरे में खड़ा कर दिया। इसी बीच विवाह हेतु मतांतरण पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो निर्णय सामने आए। एक मामले में मुस्लिम युवती समरीन हिंदू से शादी पश्चात प्रियांशी बन गई, जिसे अदालत ने अवैध माना और कहा, "केवल विवाह के लिए मतांतरण वैध नहीं"। वही दूसरे घटनाक्रम में हिंदू युवती प्रियंका, सलामत अंसारी से निकाह पश्चात मुस्लिम बन गई, जिसे उसी न्यायालय ने "पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार" बता दिया। निसंदेह, दो व्यस्क प्रेमियों के बीच मजहब कभी नहीं आना चाहिए। परंतु जब तथाकथित "प्यार" के माध्यम से एक व्यस्क मजहबी कारणों से दूसरे को अपने प्रेमजाल में फंसाएं और अपनी मजहबी पहचान छिपाने हेतु तिलक, कलावा और हिंदू नामों आदि का उपयोग करें- तो उसे धोखा ही कहा जाएगा। वास्तव में, "लव-जिहाद" के विरोध की कई परतें है। मुस्लिमों को इसकी प्रेरणा इस्लामी शब्दावली "तकैया" (TAQIYYA) से मिलती है, जिसका अर्थ है- "पवित्र धोखा"। यह उस मजहबी दर्शन का विस्तृत रूप है, जिसमें विश्व को "मोमिन" और "काफिर" के बीच बांटा गया है। जिस इस्लाम के स्वरूप को आज हम विश्व में देख रहे है, जिसमें इस इब्राहिमी मजहब की उत्पत्ति के 1,400 वर्ष बाद दुनिया की कुल आबादी 780 करोड़ में से मुस्लिम जनसंख्या 180 करोड़ है और दुनिया में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, अरब, ईरान सहित 50 घोषित इस्लामी राष्ट्र या मुस्लिम बहुल देश है- वह लगभग "जिहाद" के कारण ही संभव हुआ है। "लव-जिहाद" का चलन भारत में अधिक क्यों है? पाकिस्तान का वैचारिक अधिष्ठान "काफिर" विरोधी दर्शन पर आधारित है। इसलिए वहां मतांतरण में स्थानीय लोगों और प्रशासन का भी समर्थन मिलता रहता है। सिंध में आए-दिन शेष हिंदू-ईसाई युवतियों के जबरन मतांतरण के बाद निकाह- इसका प्रमाण है। बांग्लादेश भी इस्लामी राष्ट्र है। अब चूंकि भारत एक हिंदू बहुल है, जहां 79 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है- इसलिए यहां मध्यकालीन तौर-तरीके अपनाकर गैर-मुस्लिमों का मतांतरण करना कठिन है। इसी कारण यहां "जिहाद" के लिए तथाकथित "लव" का प्रयोग किया जा रहा है और मजहबी दायित्व की पूर्ति पर मिलने वाले "सवाब" के लिए "तकैया" (TAQIYYA) का अनुसरण कर रहे है। अब जो लोग "लव-जिहाद" को काल्पनिक और हिंदूवादी संगठनों का एजेंडा बता रहे है- क्या वह चर्च प्रेरित संगठनों की चिंता को भी सांप्रदायिक बताएंगे? इसी वर्ष के प्रारंभ में केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल के उप-महासचिव वर्गीस वलीक्कट कह चुके है- "लव-जिहाद का दृष्टिकोण व्यापक है, जिसका संबंध इस्लाम से है। इसे हम वर्षों से झेल रहे है। किंतु सेकुलर दल इसपर चर्चा ही नहीं करना चाहते।" कुछ वर्ष पहले केरल में ही ऐसे कई मामले सामने आए थे, जिसमें पहले गैर-मुस्लिम युवतियों को योजनाबद्ध तरीके से मुस्लिम युवकों ने प्यार के जाल में फंसाया और फिर मतांतरण के बाद जबरन उन्हे सीरिया स्थित आतंकवादी संगठन आई.एस के शिविरों में संभवत: "सेक्स स्लेव" बनाकर भेज दिया। जुलाई 2010 में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वामपंथी नेता वी.एस अच्युतानंदन भी "लव-जिहाद" को लेकर चेतावनी दे चुके हैं। "लव-जिहाद" का भारत में लंबा इतिहास है और यह आज वैश्विक घटनाक्रम हो गया है। हाल ही में एक मीडिया रिपोर्ट ने बकौल अभिलेखीय अनुसंधान के माध्यम से खुलासा किया था कि "लव-जिहाद" जैसे मामले 1920-30 दशक से सामने आ रहे है। ब्रिटेन में भी सिख और ईसाई युवतियां भी जिहादियों का मोहरा बन चुकी हैं। म्यांमार में बौद्ध संगठन भी इसपर अपनी चिंता व्यक्त कर चुके है। श्रीलंका में गत वर्ष ईस्टर के दिन हुए भीषण श्रृंखलाबद्ध आतंकवादी हमले के फिदायीनों में से एक पुलिस्थिनी "लव-जिहाद" का ही शिकार थी, जो इस्लाम मतांतरण और मुस्लिम से निकाह करने से पहले हिंदू थी। मतांतरण के दुष्परिणामों पर स्वामी विवेकानंद ने चेतावनी देते हुए कहा था, "जब हिंदू समाज का एक सदस्य मतांतरण करता है, तो समाज की एक संख्या कम नहीं होती, बल्कि हिंदू समाज का एक शत्रु बढ़ जाता है।" उनकी यह आशंका सही भी साबित हुई। जिस मोहम्मद अली जिन्नाह ने ब्रितानियों और वामपंथियों की मदद से सैयद अहमद खान के "दो राष्ट्र सिद्धांत" को मूर्त रूप देकर पाकिस्तान को वैश्विक मानचित्र में स्थापित किया था- उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि हिंदू थी। कटु सत्य है कि जो लोग "लव-जिहाद" को मिथक घोषित करने में जुटे है, उन्हीं के विषाक्त चिंतन ने भारतीय उपमहाद्वीप में न केवल मुस्लिम अलगाववाद को पोषित किया, अपितु भारत का विभाजन भी करा दिया। विवाह हेतु मतांतरण विरोधी प्रस्तावित कानून का विरोध करने वाले इसे भारतीय एकता, अखंडता और सेकुलरवाद सहित संवैधानिक मूल्यों पर प्रहार मान रहे है। क्या वाकई ऐसा है? सच तो यह है कि सनातन भारत का हिंदुवादी चरित्र और उसकी अक्षुण्णता से ही इस देश में उपरोक्त सभी मूल्य सुरक्षित है। 1947 में विभाजन के बाद पाकिस्तान और कालांतर में बांग्लादेश ने स्वयं को इस्लामी राष्ट्र घोषित कर लिया। क्या इन दोनों मुस्लिम देशों में आज बहुलतावाद जीवित है? यह अकाट्य सत्य है कि खंडित भारत का हिंदू बहुल होना ही विश्व के इस भूखंड पर बहुलतावाद के जीवंत होने का आधार है, जिसे कुचलने का प्रयास 8वीं शताब्दी से हो रहा है। ऐसे में "लव-जिहाद" का विरोध, बहुलतावादी परंपराओं में सच्ची श्रद्धा रखने वालों का संघर्ष है।