अमेरिकी उप-राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस के "भारतीय मूल" को लेकर भारतीय समाज और मीडिया का एक वर्ग उत्साहित है। ऐसे में यह जानना आवश्यक है कि कमला के व्यक्तित्व में भारतीयता कितनी है? इस प्रश्न का उत्तर कमला अमेरिकी जनगणना के समय पहले ही दे चुकी है। तब उन्होंने अपनी पहचान "अफ्रीकी अमेरिकी" के रूप में दर्ज कराई थी। स्पष्ट है कि वे अपनी मां से मिली भारतीय पहचान के प्रति उदासीन थी। यही कारण है कि प्रत्याशी घोषित होने के बाद बहन माया हैरिस और अमेरिकी मीडिया ने कमला को इस पद के लिए "पहली अश्वेत महिला" उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया। कमला हैरिस के समर्थक उन्हे मानवाधिकार की रक्षक के रूप में प्रचारित कर रहे है। इन दावों में कितनी सच्चाई है? बतौर अधिवक्ता, चाहे वह सैन फ्रांसिस्को की जिला अटॉर्नी जनरल हो या फिर कैलिफोर्निया अटॉर्नी जनरल- उन्होंने बाल यौन-शोषण के कई मामले में पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने का प्रयास तो किया, किंतु जब इसकी लपटें कैथोलिक चर्च तक पहुंची, तब उन्होंने एक सच्चे ईसाई की भांति और चर्च के प्रति अपनी निष्ठा रखते हुए मामले को दबाने पर अधिक जोर दिया। जब वर्ष 2004 में कमला हैरिस सैन फ्रांसिस्को की जिला अटॉर्नी जनरल बनीं, तब उन्होंने कैथोलिक चर्च के पादरी द्वारा यौन-उत्पीड़न के शिकार लोगों को न्याय दिलाने के स्थान पर चर्च के साथ मिलकर पीड़ित और आरोपी पादरियों से जुड़े दस्तावेजों को अपने कब्जे में लिया। यह उनसे पहले जिला अटॉर्नी जनरल रहे टेरेंस हॉलिनन के नेतृत्व में तैयार किया गया था, जिसमें तत्कालीन स्थानीय पादरियों के एक दशक पुराने यौन दुराचारों का विवरण था। इस दस्तावेज को सार्वजनिक किया जाना था, किंतु कमला इसपर कुंडली मारकर बैठ गईं। एक पादरी के यौन-उत्पीड़न के शिकार जॉय पिशिटेली का कहना था, "हॉलिनन के समय मामला तीव्र गति से आगे बढ़ रहा था, किंतु कमला हैरिस ने इसे बहुत पीछे ढकेल दिया।" ऐसे ही स्थानीय पादरी द्वारा 12 वर्ष आयु में कुकर्म का शिकार हुए डॉमिनिक डी लुक्का का कहना था कि वह मामले में कमला हैरिस के आचरण से स्तब्ध था। यह विडंबना ही है कि पादरियों द्वारा अनैतिक यौनाचार के पीड़ितों के मानवाधिकारों पर सुविधाजनक चुप्पी साधने वाली सुश्री कमला हैरिस, एक नेता रूप में कश्मीर में चयमात्मक मानवाधिकारों की बात करती हैं। घाटी में उनकी सहानुभूति उस वर्ग के प्रति अधिक है, जिसकी जिहादी मानसिकता ने 1947 में भारत का रक्तरंजित विभाजन कर पाकिस्तान को जन्म दिया, फिर 1980-90 के दशक में पांच लाख कश्मीरी पंडितों को घाटी से पलायन और अपने ही देश में विस्थापितों की भांति जीवन-ज्ञापन को मजबूर कर दिया। हिटलर शासन के बाद विश्व में सबसे अधिक मजहबी अत्याचार पाकिस्तान, बांग्लादेश और खंडित भारत के कश्मीर में हुआ है। यहां दशकों से हिंदू, सिख और बौद्ध अनुयायियों को उनकी उपासना पद्धति के कारण प्रताड़ित किया जा रहा है। किंतु तथाकथित मानवाधिकार रक्षक "भारतवंशी" कमला हैरिस के स्वर कश्मीर मामले पर पाकिस्तानी भाषा और वामपंथी चिंतन से अधिक मेल खाते है। अनुच्छेद 370 के संवैधानिक क्षरण सहित कश्मीर में भारत सरकार की नीतियों का विरोध- इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। अमेरिकी उप-राष्ट्रपति की प्रत्याक्षी बनने के बाद कमला हैरिस अपने भाषणों में गांधीजी का उल्लेख करते हुए सहिष्णुता, बहुलतावाद और विविधता जैसे मूल्यों पर बात कर रही हैं। सच तो यह है कि गांधीजी को यह सभी मूल्य वैदिक सूत्र "एकं सद् विप्राः बहुदा वदंति" के दर्शन से प्राप्त हुए। इसलिए उन्होंने जीवनभर चर्च और ईसाई मिशनरियों के भय, लालच और लोभ के बल मतांतरण करने का विरोध किया। गाय को भारतीय संस्कृति का प्रतीक माना, उसकी रक्षा हेतु कृत-संकल्पित रहे। यह नहीं, गांधीजी ने दलितों के साथ हुए घोर अन्यायों के परिमार्जन करने के साथ उन्हे हिंदू समाज का अभिन्न अंग माना। अब यदि कमला हैरिस वाकई गांधीजी का आदर करती हैं, तो उन्हे गांधीजी के गौरक्षा, मतांतरण और दलितों पर प्रकट विचारों का भी सम्मान करना चाहिए। यह हास्यास्पद है कि कमला हैरिस ने चुनावी भाषण में अपनी भारतीय पहचान स्थापित करने हेतु दक्षिण भारत के प्रसिद्ध व्यंजन "इडली" का उपयोग किया। अब यदि आज के दौर में भोजन से राष्ट्रीय पहचान सुनिश्चित होती, तो असंख्य भारतीय- जो पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइज़, पास्ता, स्पगैटी और चाउमीन आदि खाने का शौक रखते है, उन्हे इसी आधार पर अमेरिकी, इतावली, फ्रांसीसी या फिर चीनी संस्कृति का वाहक मान लिया जाना चाहिए। सच तो यह है कि कमला हैरिस की कवायद विशुद्ध रूप से राजनीतिक है। उनकी दृष्टि अमेरिका में बसे लगभग 40 लाख भारतीय मूल नागरिक या भारतवंशियों, जिसमें से 44 प्रतिशत- अर्थात् 18 लाख वोट देने का अधिकार रखते है- उनपर है। भारतीय संस्कृति, पारिवारिक मान्यताओं और मूल्यों से जुड़े होने के कारण हिंदू अमेरिका के सबसे संपन्न, समृद्ध और शिक्षित वर्ग में गिने जाते है। प्रतिवर्ष एक लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक अर्जित करने वालों में जहां 44% यहूदी है, वही हिंदुओं का अनुपात 36% है। यही नहीं, 77% से अधिक हिंदुओं के पास कॉलेज की डिग्रियां है। कमला हैरिस की दिवंगत मां श्यामला गोपालन, जिनका जन्म औपनिवेशिक भारत में वर्ष 1938 में हुआ- उन्होंने 1958 से अमेरिका में बसने और अफ्रीकी ईसाई मूल के डोनाल्ड हैरिस से अल्पायु विवाह के पश्चात अपने जीवन के शेष 51 वर्ष अमेरिका में बिताएं। वही कैलिफोर्निया में जन्मी कमला का पालन-पोषण कैथोलिक चर्च के सानिध्य में हुआ, इसलिए उन्हे अपनी भारतीय पहचान पर चुनाव से पहले गर्व नहीं हुआ। इस पृष्ठभूमि में उनका व्यक्तित्व कितना भारतीय या विशुद्ध अमेरिकी ईसाई है- इसका निर्णय पाठक स्वयं करेंगे।