अमेरिका में दोहरे मापदंडों की मार
अमेरिका में 6 जनवरी को जो कुछ हुआ, उससे शेष विश्व स्वाभाविक रूप से भौचक है। परंतु क्या यह सत्य नहीं है कि अमेरिकी सार्वजनिक जीवन में हिंसा का अतिक्रमण पहले ही हो चुका था? जब तक ट्रंप विरोधी भीड़ हिंसक थी, तब तक उनका प्रदर्शन- जनाक्रोश और देशभक्ति था। 25 मई 2020 को एक श्वेत पुलिसकर्मी द्वारा अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की गर्दन दबाकर निर्मम हत्या के बाद भड़की हिंसा ने अमेरिका के 2,000 कस्बों-शहरों को अपनी कब्जे में ले लिया था। भीषण लूटपाट के साथ करोड़ों-अरबों की निजी-सार्वजनिक संपत्ति को फूंक दिया गया था। हिंसा में 19 लोग मारे गए थे, जबकि 14 हजार लोगों की गिरफ्तारियां हुई थी। इस हिंसा का नेतृत्व वामपंथी अश्वेत संगठन- एंटिफा (Antifa) कर रहा था। तब कई वाम-वैचारिक अमेरिकी राजनीतिज्ञों और पत्रकारों ने इस अराजकता को न केवल उचित ठहराया, अपितु इसे प्रोत्साहन भी दिया।
एंटिफा प्रायोजित उत्पात पर सीएनएन के प्रख्यात टीवी एंकर क्रिस कूमो ने कहा था, "किसने कहा है कि प्रदर्शनकारियों को शांतिपूर्ण रहना चाहिए?" वही भारतीय मूल की अमेरिकी सांसद और कश्मीर मामले में पाकिस्तान हितैषी प्रमिला जयपाल ने एक ट्वीट में अश्वेतों के हिंसक प्रदर्शन को देशभक्ति की संज्ञा दी थी। इसी तरह एक अन्य अमेरिकी सांसद अलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कोर्टेज़ ने तो ट्वीट करते हुए यहां तक लिख दिया था, "प्रदर्शनकारियों का लक्ष्य ही होना चाहिए कि अन्य लोगों असुविधा हो।" सबसे बढ़कर अमेरिका की भावी उप-राष्ट्रपति और भारतीय मूल की कमला हैरिस ने एंटिफा प्रोत्साहित हिंसा का समर्थन करते हुए कहा था, "अब यह रुकने वाला नहीं है।"
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में "भारत"
अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव लगभग दो माह दूर है। 3 नवंबर को मतदान के साथ चुनावी प्रक्रिया प्रारंभ होगी और 5 जनवरी 2021 तक परिणाम घोषित होने की संभावना है। मेरे 50 वर्ष के राजनीतिक जीवन में अमेरिका का यह चुनाव ऐसा पहला निर्वाचन है, जिसमें भारत मुखर रूप से केंद्रबिंदु में है। वहां भारतीय मूल अमेरिकी नागरिकों की संख्या 40 लाख से अधिक है, जिसमें से 44 प्रतिशत- अर्थात् लगभग 18 लाख लोग वोट देने का अधिकार रखते है।
अमेरिका में "भारतीयों" को रिझाने की होड़ चरम पर है। जहां एक ओर डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपने राष्ट्रपति प्रत्याशी जोसेफ (जो) बिडेन की रनिंग मेट के रूप में की कमला हैरिस को चुनते हुए भारत से सुदृढ़ संबंध सहित अमेरिकी भारतीयों के उत्थान हेतु अलग नीति बनाने पर बल दिया है। वहीं वर्तमान राष्ट्रपति और रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने कमला से भी ज्यादा भारतीय समर्थन होने का दावा किया है। साथ ही उन्होंने पूर्व राजदूत निक्की हेली को अपना स्टार-प्रचारक भी बना दिया है। स्पष्ट है कि "भारत" के प्रति अमेरिकी राजनीतिक-अधिष्ठान के झुकाव का कारण पिछले छह वर्षों में भारतीय नेतृत्व की वह नीतियां रही है, जिसने उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को पहले से कहीं अधिक सशक्त और सामरिक, आर्थिक व आध्यात्मिक रूप से वैश्विक शक्ति बनने के मार्ग पर प्रशस्त किया है।
अमेरिकी उप-राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस के "भारतीय मूल" को लेकर भारतीय समाज और मीडिया का एक वर्ग उत्साहित है। ऐसे में यह जानना आवश्यक है कि कमला के व्यक्तित्व में भारतीयता कितनी है? इस प्रश्न का उत्तर कमला अमेरिकी जनगणना के समय पहले ही दे चुकी है। तब उन्होंने अपनी पहचान "अफ्रीकी अमेरिकी" के रूप में दर्ज कराई थी। स्पष्ट है कि वे अपनी मां से मिली भारतीय पहचान के प्रति उदासीन थी। यही कारण है कि प्रत्याशी घोषित होने के बाद बहन माया हैरिस और अमेरिकी मीडिया ने कमला को इस पद के लिए "पहली अश्वेत महिला" उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया।
कमला हैरिस के समर्थक उन्हे मानवाधिकार की रक्षक के रूप में प्रचारित कर रहे है। इन दावों में कितनी सच्चाई है? बतौर अधिवक्ता, चाहे वह सैन फ्रांसिस्को की जिला अटॉर्नी जनरल हो या फिर कैलिफोर्निया अटॉर्नी जनरल- उन्होंने बाल यौन-शोषण के कई मामले में पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने का प्रयास तो किया, किंतु जब इसकी लपटें कैथोलिक चर्च तक पहुंची, तब उन्होंने एक सच्चे ईसाई की भांति और चर्च के प्रति अपनी निष्ठा रखते हुए मामले को दबाने पर अधिक जोर दिया।
विश्व में बढ़ती भारत और भारतीयता की धमक
आखिर इतिहास कैसे करवट लेता है?- इसका प्रत्यक्ष और हालिया उदाहरण भारत से मीलों दूर यूनाइडेट किंगडम के राजनीतिक घटनाक्रम में मिलता है। ब्रिटेन में प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के बाद वहां के तीसरे और चौथे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति- न केवल भारतीय मूल के है, अपितु वैदिक सनातन संस्कृति का अंश होने पर गौरवांवित भी अनुभव करते है। 47 वर्षीय प्रीति पटेल जहां 2019 से ब्रिटेन में गृह मंत्रालय संभाल रही हैं, तो वही 39 वर्षीय ऋषि सुनाक को गत दिनों ही महत्वपूर्ण वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसके अतिरिक्त, 52 वर्षीय और आगरा में जन्मे आलोक शर्मा भी ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ा रहे है।