स्वप्न सुंदरी, स्वर्ण तस्करी और आतंक का कॉकटेल
केरल स्वर्ण तस्करी मामले का प्याज के छिलके की तरह परत दर परत खुलना अब भी जारी है। इस बात के प्रमाण मिले है कि इस तस्करी से होने वाली मोटी कमाई के बड़े हिस्से से आतंकवाद का वित्तपोषण होना था। यह संभवत: देश का पहला ऐसा बहु-आयामी घोटाला है, जो दुनिया की किसी भी क्राइम थ्रिलर फिल्म को मात दे दें। इसमें सोने की तस्करी है, आतंकी घटनाओं का गोरखधंधा है, मंत्री संदेह के घेरे में है, वरिष्ठ नौकरशाह की प्रमाणिक संलिप्ता है। इन सभी के केंद्रबिंदु में एक सुंदरी है और उसके द्वारा रचा मायाजाल भी है।
इस मामले की जड़े कितनी गहरी है, यह इससे बात से स्पष्ट है कि जांच की आंच केरल के मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर संयुक्त अमीरात अरब (यू.ए.ई.) के महावाणिज्य दूतावास तक पहुंच चुकी है। आरोपियों के प्रदेश के कैबिनेट मंत्री व सचिवालय से संपर्क होने की बात सामने आ चुकी है। अभी तक की जांच के अनुसार, पिछले एक वर्ष में राजनायिक मार्ग के माध्यम से 230 किलो- अर्थात् 125-130 करोड़ के सोने की तस्करी हो चुकी है। सोचिए, अभी केवल इतने सोने की तस्करी का खुलासा हुआ है, अनुमान लगाना कठिन नहीं कि ऐसा कितनी बार हो चुका होगा। एनआईए ने खुलासा किया है कि मामले के एक आरोपी के.टी. रमीज के आतंकियों के वित्तपोषण में संलिप्त और देशविरोधी गतिविधियों में शामिल तत्वों के संपर्क में रहा है, जिसके लिए उसने कई विदेश यात्राएं भी की है। मलप्पुरम निवासी रमीज का 2014 से आपराधिक इतिहास रहा है, किंतु हर बार वे बच निकलता था।
कांग्रेस में नेतृत्व, नीति और नीयत का संकट
विगत दिनों कांग्रेस की राजस्थान ईकाई में आए झंझावत ने पार्टी के अस्तित्व पर पुन: प्रश्नचिन्ह लगा दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि 140 वर्ष पुराना राजनीतिक दल आज इच्छामृत्यु मानसिकता से ग्रस्त है। दीवार पर लिखी इस इबारत को पढ़कर कोई भी व्यक्ति (कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व- गांधी परिवार को छोड़कर) आसानी से इस नतीजे पर पहुंच सकता है।
वास्तव में, कांग्रेस में संकट केवल नेतृत्व का ही नहीं है। पार्टी के तीव्र क्षरण में कांग्रेस नेतृत्व की खोटी नीयत और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय समस्याओं पर नीतियों के नितांत अभाव का भी सामान योगदान है। यदि किसी दल में नेतृत्व का टोटा हो, नीयत में कपट हो और नीतियों में भारी घालमेल हो- तो स्वाभाविक रूप से उस दल का न तो वर्तमान है और न ही कोई भविष्य।
कोविड-19 या चाइनीज वायरस!
आलेख लिखे जाने तक, भारत में 170 से अधिक लोग वैश्विक महामारी कोविड-19 से संक्रमित है। अबतक इससे देश में 4 की मृत्यु हो चुकी है, जो सभी 60 आयुवर्ष- अर्थात् वृद्ध थे। इस संकट से निपटने और लोगों जागरुक करने की दिशा में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार (19 मार्च) राष्ट्र के नाम संदेश भी दिया।
बात यदि शेष विश्व की करें, तो यह खतरनाक वायरस चीन के बाद इटली सहित 162 देशों में फैल गया है और लगभग 9,000 लोगों का जीवन समाप्त कर चुका है। आलेख लिखे जाने तक, 2.20 लाख से अधिक लोग पूरे विश्व में इस वायरस से संक्रमित है, तो 85 हजार लोग ऐसे भी है, जो समय रहते चिकित्सीय निरीक्षण में आने के बाद स्वस्थ भी हो गए। इस वैश्विक महासंकट के कारण भारत सहित कई देशों ने अपना संपर्क शेष विश्व से कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार बुरी तरह प्रभावित हो गए। आंतरिक रूप से कई देशों की सरकारों (प्रांतीय सरकार सहित) ने स्कूल कॉलेज आदि शिक्षण संस्थान, मॉल, सिनेमाघर, बाजार और एक स्थान पर इकट्ठा होने आदि पर सशर्त प्रतिबंध लगा दिया है। बचाव में उठाए गए इन कदमों से विश्वभर में सामान्य जीवन मानो ऐसा हो गया है, जैसे कई दशकों पहले हुआ करती थी।
देश का एक और बैंक- येस बैंक गलत कारणों से सार्वजनिक विमर्श में है। केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने समय रहते इस बैंक को अपने नियंत्रण लेकर जमाकर्ताओं का पैसा न केवल डूबने से बचा लिया, साथ ही भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जनता का विश्वास बनाए रखा है। यही नहीं, खाताधारकों और निवेशकों के गाढ़ी कमाई का बंदरबांट कर एक बार विदेश भाग चुके येस बैंक के सह-संस्थापक राणा कपूर को बहाने से देश बुलाकर गिरफ्तार कर लिया। यक्ष प्रश्न है कि आखिर देश के चौथे सबसे बड़े निजी बैंक के रूप में स्थापित- येस बैंक इस स्थिति में क्यों पहुंचा? क्या यह सार्वजनिक उपक्रम बनाम निजी क्षेत्र से संबंधित मामला है?
दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा क्यों भड़की?
देश की राजधानी दिल्ली का उत्तर-पूर्वी हिस्सा 23 फरवरी की रात से अगले 48 घंटों तक हिंसा की आग में जलता रहा। इसकी लपटें सड़क से संसद के भीतर तक भी उठती दिखीं। हिंसा में अबतक सुरक्षा अधिकारी अंकित शर्मा और पुलिसकर्मी रतनलाल सहित 53 लोगों की मौत हो चुकी है, तो 200 से अधिक लोग घायल बताए जा रहे है। मामले में पुलिस ने 250 से अधिक प्राथमिकी दर्ज की है और शाहरुख पठान सहित 900 से अधिक लोगों को या तो गिरफ्तार किया है या फिर हिरासत में लिया है। ऐसे में स्वाभाविक प्रश्न है कि आखिर दिल्ली में हिंसा क्यों भड़की? क्या इसे समय रहते रोका जा सकता था?
विश्व में बढ़ती भारत और भारतीयता की धमक
आखिर इतिहास कैसे करवट लेता है?- इसका प्रत्यक्ष और हालिया उदाहरण भारत से मीलों दूर यूनाइडेट किंगडम के राजनीतिक घटनाक्रम में मिलता है। ब्रिटेन में प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के बाद वहां के तीसरे और चौथे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति- न केवल भारतीय मूल के है, अपितु वैदिक सनातन संस्कृति का अंश होने पर गौरवांवित भी अनुभव करते है। 47 वर्षीय प्रीति पटेल जहां 2019 से ब्रिटेन में गृह मंत्रालय संभाल रही हैं, तो वही 39 वर्षीय ऋषि सुनाक को गत दिनों ही महत्वपूर्ण वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसके अतिरिक्त, 52 वर्षीय और आगरा में जन्मे आलोक शर्मा भी ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ा रहे है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव:- परिणाम विकास प्रेरित या सांप्रदायिक?
दिल्ली विधानसभा चुनाव क्या विकास के मुद्दों पर ही लड़ा गया या सांप्रदायिक आधार पर? इस प्रश्न का उत्तर- हां और ना दोनों में है। इस चुनाव की सच्चाई यह है कि दिल्ली के मुसलमानों ने सांप्रदायिक आधार पर एकजुट होकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हराने के लिए वोट दिया। इसके विपरीत, हिंदू मतदाताओं के एक वर्ग ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उनके "नए व्यक्तित्व" और उनकी सरकार की लोकलुभावन नीतियों (बिजली, पानी सहित) के कारण फिर से चुना।
दिल्ली में कुल 1.48 करोड़ मतदाताओं में 12 प्रतिशत- लगभग 18 लाख से अधिक मुस्लिम मतदाता है। माना जाता है कि इस चुनाव में 90 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मतदाताओं ने "आप" को वोट दिया। शाहीनबाग- जोकि चुनाव से पहले ही इस्लामी पहचान व अस्मिता का प्रतीक बन चुका था, जहां असम को भारत से काटने जैसी राष्ट्रविरोधी योजनाओं की रूपरेखा खींची गई- वहां से (ओखला सीट) "आप" प्रत्याशी मोहम्मद अमानातुल्ला को एकतरफा 66 प्रतिशत मत प्राप्त हुआ और वोट-अंतर के संदर्भ में दूसरी सबसे बड़ी जीत दर्ज की। सीलमपुर, मटियामहल, चांदनी चौक, बल्लीमरान, बाबरपुर और मुस्तफाबाद जैसे मुस्लिम प्रभुत्व वाली सीट- जहां मुस्लिम आबादी 30-70 प्रतिशत के बीच है- वहां भी "आप" प्रत्याशियों ने 53 से 75 प्रतिशत मतों के साथ एकतरफा विजय प्राप्त की।
रजनीकांत पर गुस्सा क्यों?
देश के लोकप्रिय अभिनेताओं में से एक और "थलाइवा" नाम से विख्यात- रजनीकांत (शिवाजीराव गायकवाड़) इन दिनों सुर्खियों में है। पिछले 45 वर्षों से दक्षिण भारतीय फिल्मों के साथ हिंदी सिनेमा में भी अपने दमदार अभिनय और संवाद के कारण वे देश-विदेश में बसे अपने करोड़ों प्रशंसकों के दिलों पर राज कर रहे है। फिर ऐसा क्या हुआ कि अपनी कर्मभूमि तमिलनाडु में एक वर्ग उनका न केवल विरोध कर रहा है, अपितु उनसे नाराज भी हो गया है?
इसका संबंध प्रसिद्ध तमिल साप्ताहिक पत्रिका "तुगलक" की 50वीं वर्षगांठ पर 14 जनवरी को आयोजित वह कार्यक्रम है, जिसमें रजनीकांत ने कहा था- "तमिलनाडु के सेलम में एक रैली के दौरान पेरियार (इरोड वेंकट रामासामी नायकर) ने श्रीरामचंद्र और सीता की निर्वस्त्र मूर्तियों का जूतों की माला के साथ जुलूस निकाला था। किसी ने ये ख़बर नहीं छापी थी, किंतु चो रामास्वामी (तुगलक पत्रिका के संस्थापक और तत्कालीन संपादक) ने इसकी कड़ी आलोचना की थी और पत्रिका के मुख्यपृष्ठ पर इसे प्रकाशित किया था।" रजनीकांत के इस वक्तव्य से एकाएक मुख्य विपक्षी दल डीएमके (द्रमुक) और उसके समर्थक संगठन भड़क उठे। उनका कहना है- "रजनीकांत अपने वक्तव्य पर पुनर्विचार करें और झूठ बोलने के लिए माफी मांगे।" इसपर रजनीकांत का कहना है- "मैं अपनी बात से पीछे नहीं हटूंगा, मैं इसे सिद्ध भी कर सकता हूं।"
गत दिनों कैथोलिक बिशप की सर्वोच्च संस्था "द सायनॉड ऑफ साइरो-मालाबार चर्च" ने केरल में योजनाबद्ध तरीके से ईसाई युवतियों के मतांतरण का मुद्दा उठाया। लगभग उसी कालांतर में पाकिस्तान स्थित सिंध में तीन और नाबालिग हिंदू लड़कियों के अपहरण, जिसमें एक का मतांतरण के बाद जबरन निकाह कर दिया गया। धरातल पर कहने को दोनों मामले भारतीय उपमहाद्वीप के दो अलग हिस्सों से सामने आए है, किंतु इनका आपस में बहुत ही गहरा संबंध है। इन दोनों घटनाओं के पीछे एक ही विषाक्त दर्शन है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 19 जनवरी (रविवार) को केरल स्थित साइरो-मालाबार चर्च के सामूहिक प्रार्थना के दौरान एक परिपत्र को पढ़ा गया। इसमें केरल सहित अन्य राज्यों की ईसाई युवतियों को प्रेमजाल में फंसाने और इस्लामिक स्टेट जैसे खूंखार आतंकवादी संगठनों में भेजे जाने के खिलाफ चेतावनी थी। इससे कुछ दिन पहले ही "द सायनॉड ऑफ साइरो-मालाबार चर्च" के कार्डिनल जॉर्ज एलनचेरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में भी राज्य पुलिस पर "लव-जिहाद" के मामलों पर ठोस कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया था। जैसे ही लव-जिहाद का मामला पुन: विमर्श में आया, एकाएक केरल की वामपंथी सरकार ने आरोपों का खंडन कर दिया।
आखिर क्यों विवादों में रहता है जे.एन.यू.?
देश के सबसे विवादित विश्वविद्यालयों में से एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जे.एन.यू.) पुन: गलत कारणों से चर्चा में है। यह स्थिति तब है, जब भारतीय करदाताओं की गाढ़ी कमाई पर शत-प्रतिशत आश्रित और 8,500 छात्रों से सुसज्जित जे.एन.यू. पर औसतन वार्षिक 556 करोड़ रुपये, अर्थात् प्रति एक छात्र 6.5 लाख रुपये का व्यय होता है। इससे भी बढ़कर, यह संस्था दक्षिण दिल्ली स्थित एक हजार एकड़ की बहुमूल्य भूमि पर निर्मित है और सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त है।
जेएनयू में 5 जनवरी को हुई हिंसा, जिसमें कई छात्र और प्राध्यापक घायल हो गए- उसके पीछे शुल्क वृद्धि विरोधी वह छात्र-आंदोलन है, जिसमें वामपंथियों द्वारा संचालित जेएनयू छात्रसंघ शनिवार (4 जनवरी) को परीक्षा का बहिष्कार करने हेतु विश्वविद्यालय के "सर्वर रूम" को नुकसान पहुंचाते हुए उसे ठप कर देता है। इस दौरान वहां उपस्थित सुरक्षाकर्मियों से मारपीट भी की जाती है। पुलिस ने इस संबंध में छात्रसंघ अध्यक्ष के खिलाफ सहित कुल तीन प्राथमिकियां दर्ज की है।