Dainik Jagran 2013-04-25

क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?

पिछले साल 400 से अधिक और इस वर्ष अब तक करीब सौ बार चीन की सेना ने भारतीय सीमा का अतिक्रमण किया है। अतिक्रमण की 90 प्रतिशत घटनाएं लद्दाख क्षेत्र में दर्ज की गई हैं। ताजा अतिक्रमण में विगत 15 अप्रैल की मध्यरात्रि को चीन की सेना पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्दी में भारतीय सीमा क्षेत्र में 10 किलोमीटर अंदर, बुरथे तक घुस आई। करीब 17,000 फीट की ऊंचाई वाले इस क्षेत्र में चीनी सेना ने तीन अस्थायी चौकी निर्मित किए हैं। भारत द्वारा आपत्ति दर्ज कराए जाने के बावजूद चीनी सैनिक पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। उसने उक्त क्षेत्र को अपना बताया है। चीन के इस दुस्साहस का कारण क्या है? यक्ष प्रश्न यह भी कि सत्ता अधिष्ठान चीन को माकूल जवाब देने से कतराता क्यों है? चीन के नए नेतृत्व के सत्ता संभालने और भारत के साथ रिश्ता मधुर करने के उसके दावे के बीच घुसपैठ की घटनाएं वस्तुतः चीन की साम्राज्यवादी मानसिकता को ही रेखांकित करती हैं। चीन के प्रधानमंत्री ली कछयांग अगले महीने भारत दौरे पर आने वाले हैं। प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद ली के विदेश दौरों की शुरुआत भारत से ही होने वाली है, इसके बाद वह पाकिस्तान जाएंगे। चीन इस नाते यह संदेश देना चाहता है कि वह भारत के साथ विश्वास और मैत्री मजबूत करने का इच्छुक है। इससे पूर्व पिछले महीने डरबन में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से हुई मुलाकात के दौरान भी ऐसा ही संदेश देने का प्रयास किया था। उन्होंने भारत के साथ रिश्तों को प्राथमिकता देने की बात की थी। ऐसे में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ करने की हिमाकत कैसे की? वस्तुतः यह चीन की कथनी और करनी में विरोधाभास की पुष्टि करने के साथ उसकी भितरघाती मानसिकता को भी रेखांकित करता है। भारतीय क्षेत्र में चीनी सैनिकों का अतिक्रमण नई बात नहीं है। चीन भारत के इलाकों में घुसकर पत्थरों पर चीन-चीन लिख जाता है, भारतीय गड़रियों को मारपीट कर खदेड़ भगाता है, उनके रिहायशी इलाकों में कब्जा कर लेता है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने रिपोर्ट भेजकर केंद्र सरकार को चेताया है कि चीर्न इंच-इंच कर भारतीय क्षेत्रों पर कब्जा कर रहा है। सीमा पर बड़े पैमाने पर बंकर आदि का निर्माण कार्य चल रहा है। लद्दाख और उत्तराखंड में भारतीय थल और नभ सीमा का बारंबार अतिक्रमण वस्तुतः सन् 1962 में भारत की पीठ में छुरा घोंपने वाले चीन की विस्तारवादी मंशा की ही पुष्टि करता है। चीन केवल हमारी सीमाओं को निगलने के लिए लालायित नहीं है। दक्षिण चीन सागर की सीमाओं के लिए वह विएतनाम तो पूर्वी चीन सागर के कुछ द्वीपों को लेकर वह निरंतर जापान के साथ टकराव की मुद्रा में है। सरदार पटेल ने सन् पचास में ही चीन की साम्राज्यवादी मंशा से आगाह करते हुए चेतावनी दी थी कि तिब्बत में चीन का हस्तक्षेप भारत में हस्तक्षेप समझा जाए। सरदार पटेल से भी काफी पहले प्रखर राष्ट्रवादी महर्षि अरविंद ने चेताते हुए कहा था, ‘‘चीन दक्षिण-पश्चिम एशिया और तिब्बत पर पूरी तरह छाकर उसे हजम करने का खतरा पैदा कर सकता है और भारतीय सीमाओं तक के सारे क्षेत्र पर कब्जा जमा लेने की हद तक जा सकता है।’’ तिब्बत पर चीनी आक्रमण और उसकी प्रतिक्रिया में पं. नेहरू की तटस्थता पर डॉ. भीमराव अंबेडकर ने टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘‘यदि भारत ने तिब्बत को मान्यता प्रदान कर दी होती, जैसा कि उसने 1949 में चीनी गणराज्य को प्रदान की थी, तो आज भारत-चीन विवाद न होकर तिब्बत-चीन सीमा विवाद होता।’ तिब्बत और नेपाल से लगती सीमावर्ती भारतीय प्रदेशों में चीनी सैनिकों की घुसपैठ निरंतर चली आ रही है। भारत की करीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर चीन का अवैध कब्जा है। इसके साथ ही वह निरंतर सीमावर्ती क्षेत्रों के सामरिक महत्व वाले इलाकों में सीमा विवाद के नाम पर कब्जा जमाने की कोशिश करता रहता है। किंतु केंद्रीय सत्ता अधिष्ठान हर बार चीन की हरकत पर मौन साध लेता है। विडंबना यह है कि बासठ के युद्ध से पूर्व जब भारतीय सीमा के कुछ इलाकों में चीन ने कब्जा किया था, तब पं. नेहरू सरकार की सरकार के लिए भी यह चिंता का विषय नहीं था। तत्कालीन रक्षामंत्री वीके कृष्णमेनन के अनुसार कब्जाई गई भूमि में तो घास भी नहीं उगती थी। वर्तमान सत्ता अधिष्ठान का मौन कहीं उसी ऐतिहासिक गलती की पुनरावृत्ति को निमंत्रित नहीं कर रहा? चीन हिंद महासागर में भी अपने पैर पसार चुका है। हिंद महासागर के द्वीप देश सेशेल्स ने अपने यहां चीन को नौसैनिक अड्डा स्थापित करने की अनुमति दे दी है। कहने को चीन यह सुविधा सोमालिया के समुद्री डाकुओं से मुकाबले के लिए तैनात अपने युद्धपोतों को राशन और ईंधन की आपूर्ति के लिए खड़ा करना चाहता है, किंतु उसकी वास्तविक मंशा भारत की घेराबंदी की है। भारत सेशेल्स को अपना सामरिक मित्र मानता रहा है। सन् 2005 में भारत ने सेशेल्स को उसके समुद्री इलाकों की चौकसी के लिए आईएनएस तारामुगली नामक युद्धपोत उपहार में दिया था। वस्तुतः सेशेल्स के साथ भारत के विशेष रक्षा संबंध को देखते हुए चीन और अमेरिका, दोनों ही सेशेल्स को अपने पाले में करने के लिए बेचैन है। सेशेल्स से 600 किलोमीटर दूर डिएगो गार्शिया द्वीप में पहले से ही अमेरिका का नौसैन्य अड्डा मौजूद है। सेशेल्स के एक टापू से अमेरिका ने अपने पी-3-सी टोही विमानों को उड़ाने की अनुमति पहले ही ले रखी है। सेषेल्स 115 द्वीपों का देश है, जिसके राजस्व का मुख्य स्रोत पर्यटन और समुद्री मछली है। यहां होटल उद्योग में अपार संभावनाएं हैं, जिस पर चीन की निगाह टिकी है। हाल ही में चीन ने हिंद महासागर में खनिज संसाधनों के दोहन के अधिकार प्राप्त किए हैं। इस पर होने वाले अरबों डॉलर के निवेश को सुरक्षा प्रदान करने के लिए भी उसे एक ठोस नौसैन्य अड्डा स्थापित करने की जरूरत थी। वस्तुतः चीन की हर चाल में आने वाले दो-तीन दषकों की रणनीति भरी होती है। पाकिस्तान के ग्वादर में तैनात चीनी मिसाइलों की मारक क्षमता इतनी है कि मुंबई जैसे षहर उसकी जद में हैं। चीनी व्यूह रचना की तुलना में भारत की निष्क्रियता चिंताजनक है। चीन ने भारतीय सीमाओं तक सड़क और रेलमार्गों का जाल बिछा रखा है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के सुकार्दू और म्यांमार से सटे कुनमिंग जैसे दूरस्थ क्षेत्रों तक आधारभूत संरचनाओं का विकास कर चीन दक्षिण एशिया पर अपनी पकड़ मजबूत बनाना चाहता है। बासठ में चीन ने अक्साई चीन पर कब्जा कर लिया था। अक्साई चीन और ल्हासा के बीच संपर्क मार्ग विकसित करने के साथ चीन ने तिब्बत के दूरगम्य क्षेत्रों तक भी सड़कों का विस्तार किया है। भारत सीमा से सटे अपने सैन्य और सामरिक महत्व के अड्डों तक चीन ने सुचारू आवागमन व परिवहन व्यवस्था विकसित कर ली है। चीन की विस्तारवादी मानसिकता की अनदेखी करना बासठ के अपमानजनक पराजय को निमंत्रित करना है।