Punjab Kesari 2021-02-17

क्या चीन पर भारत विश्वास कर सकता है?

गत दिनों एक चौंकाने वाली खबर आई। पिछले नौ माह से जिस प्रकार पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) अर्थात्- चीनी सेना बख़्तरबंद वाहनों के साथ पूर्वी लद्दाख में अस्त्र-शस्त्रों से लैस भारतीय सेना से टकराने को तैयार थी, वह वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर 10 फरवरी 2021 को एकाएक पीछे हट गई। चीनी सेना इतनी जल्दी में थी कि उसने पैंगोंग त्सो के दक्षिण तट से अपने 200 से अधिक युद्धक तोपों/टैंक एक ही दिन में पीछे कर लिए और फिंगर-8 के उत्तरी छोर से अपने सैनिकों को वापस ले जाने के लिए 100 भारी वाहन तैनात कर दिए। जिस रफ्तार से साम्यवादी चीन ने अपनी सेना और तोपों को हटाया, उसने कुछ प्रश्नों को जन्म दे दिया। आखिर साम्यवादी चीन ने ऐसा क्यों किया? क्या सच में चीन का ह्द्य-परिवर्तन हो गया है या फिर यह उसकी एक रणनीतिक चाल है? संक्षेप में कहें, तो क्या भारत साम्राज्यवादी चीन पर विश्वास कर सकता है? यह किसी से छिपा नहीं है कि वर्ष 1949 से साम्राज्यवादी चीन, भारतीय क्षेत्रों पर गिद्धदृष्टि रख रहा है। वह 1950 में तिब्बत को निगल गया, हम चुप रहे। चीन की नीयत को लेकर असंख्य चेतावनियों की प्रारंभिक भारतीय नेतृत्व ने अवहेलना की। फिर 1962 में युद्ध हुआ, जिसमें हमें न केवल शर्मनाक पराजय मिली, साथ ही देश की हजारों वर्ग कि.मी. भूमि पर चीन का कब्जा हो गया और इसके अगले पांच दशकों तक वह हमारी अति-रक्षात्मक नीति का लाभ उठाकर भारतीय भूखंडों पर अतिक्रमण करने का प्रयास करता रहा। 2013 में लद्दाख में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद 2017 का डोकलाम प्रकरण और 2020 का गलवान घाटी घटनाक्रम- इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
Punjab Kesari 2021-02-10

आंदोलनजीवियों का सच

दिल्ली सीमा पर कृषि-सुधार कानून विरोधी आंदोलन को ढाई माह से ऊपर हो गया है। यह कब समाप्त होगा- कहना कठिन है। किंतु इस आंदोलन में कुछ सच्चाइयां छिपी है, जिससे हमें वास्तविक स्थिति को समझने में सहायता मिलती है। पहला- यह किसान आंदोलन ही है। दूसरा- कृषि सुधारों के खिलाफ आंदोलित यह किसान देश के कुल 14.5 करोड़ किसानों में से मात्र 4-5 लाख का प्रतिनिधित्व करते है। तीसरा- यह संघर्ष नव-धनाढ्य किसानों के वित्तीय हितों और अस्तित्व की रक्षा को लेकर है। और चौथा- इस विरोध प्रदर्शन का लाभ हालिया चुनावों (2019 का लोकसभा चुनाव सहित) में पराजित विपक्षी दलों के समर्थन से जिहादी, खालिस्तानी, वामपंथी, वंशवादी और प्रतिबंधित एनजीओ और शहरी नक्सली जैसे प्रमाणित भारत विरोधी अपने-अपने एजेंडे की पूर्ति हेतु उठा रहे है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 फरवरी को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए व्यंग-विनोद में "आंदोलनजीवी" शब्दावली का उल्लेख किया था। वास्तव में, यह लोग अलग-अलग रूपों में भारत की मूल सनातन और बहुलतावादी भावना के खिलाफ दशकों से प्रपंच रच रहे है। चूंकि अपनी विभाजनकारी मानसिकता और भारत-विरोधी चरित्र के कारण यह समूह अपने बल पर भारत में कोई भी आंदोलन खड़ा करने में असमर्थ है, इसलिए वे दशकों से- विशेषकर वर्ष 2014 के बाद से देश में सत्ता-अधिष्ठान विरोधी प्रदर्शनों (वर्तमान किसान आंदोलन सहित) में शामिल होकर खंडित भारत को फिर से टुकड़ों में विभाजित करने का प्रयास कर रहे है। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में उपद्रव, लालकिले के प्राचीर में जबरन घुसकर पंथविशेष का ध्वज फहराना और खालिस्तान समर्थकों द्वारा विदेशों में प्रदर्शन के बाद एक विषाक्त "टूलकिट" का खुलासा होना, जिसमें योजनाबद्ध तरीके से किसान आंदोलन को लेकर भारत-विरोधी अभियान छेड़ने का उल्लेख है- इसका प्रमाण है।
Punjab Kesari 2021-02-03

2021-22 बजट: आर्थिकी के लिए संजीवनी

कठिन समय ही सही परीक्षा का समय होता है। वैश्विक महामारी कोविड-19 ने पिछले 10 माह में विश्व अर्थव्यवस्था को तबाह करके रख दिया है और भारत इसका अपवाद नहीं है। इस मुश्किल घड़ी में भारतीय आर्थिकी को पुनर्जीवित करना, उसे फिर से विकास का ईंजन बनाना और निराशाजनक स्थिति को आशावान वातावरण में परिवर्तित करना स्वाभाविक रूप से वांछनीय लक्ष्य है। संतोष इस बात का है कि वित्तवर्ष 2021-22 का बजट इन कसौटियों पर खरा उतरता है। यदि बजट का संपूर्ण क्रियान्वन हुआ, तो निसंदेह यह देश की आर्थिकी के लिए संजीवनी होगी। इस बजट की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसमें तथ्यों को ईमानदारी से पारदर्शिता के साथ प्रस्तुत किया गया है। चालू वित्तवर्ष में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को खाद्य सब्सिडी के लिए 1,15,570 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। किंतु बजटीय प्रावधान से अलग एफसीआई पर तीन लाख करोड़ से अधिक का उधार भी हो गया। वित्तमंत्री ने इस आंकड़े को संशोधित करते हुए 4,22,618 करोड़ रुपये कर दिया। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए यह संशोधित अनुमान, बजटीय आंकड़े से 3.66 गुना अधिक है। यह दर्शाता है कि एफसीआई की लगभग सभी उधारी को स्वीकृति दे दी गई है। अगले वित्तवर्ष में खाद्य सब्सिडी का बजटीय अनुमान 2,42,836 करोड़ रुपये रखा गया है। यही नहीं, सरकार का माना है कि चालू वित्तवर्ष के लिए पूंजीगत व्यय 4.12 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान से बढ़कर 4.39 लाख करोड़ रुपये हो गया है। अगले वित्तवर्ष में इसे 34.5 प्रतिशत बढ़ाकर 5.5 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है।
Punjab Kesari 2021-01-27

राम मंदिर पुनर्निर्माण- भारतीय सांस्कृतिक पहचान की पुनर्स्थापना

रामजन्मभूमि अयोध्या में बनने जा रहे मंदिर सहित 70 एकड़ परिसर की भव्यता पर 1,100 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह निर्माण कार्य 3 वर्ष में पूरा होने का अनुमान है। प्रस्तावित राम मंदिर के वैभव की झलक गणतंत्र दिवस पर दिल्ली स्थित राजपथ पर निकली महर्षि वाल्मीकि और राम मंदिर की प्रतिकृति से सुसज्जित उत्तरप्रदेश की झांकी में मिल जाती है। देश-विदेश में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के हजारों मंदिर है। ऐसे में अयोध्या स्थित निर्माणाधीन मंदिर क्या एक अन्य राम मंदिर की भांति होगा- जिसकी विशेषता केवल उसकी सुदंरता, भव्यता और विशालता तक सीमित होगी या फिर इसका महत्व कहीं अधिक व्यापक है? करोड़ों हिंदुओं की आस्था है कि श्रीराम, भगवान विष्णु के एक अवतार है। क्या राम को केवल इस परिचय की परिधि से बांधा जा सकता है? वास्तव में, श्रीराम ही भारतीय सनातन संस्कृति की आत्मा है, जिनका जीवन इस भूखंड में बसे करोड़ों लोगों के प्रेरणास्रोत है। वे अनादिकालीन भारतीय जीवनमूल्य, परंपराओं और कर्तव्यबोध का शाश्वत प्रतीक हैं। इसलिए गांधीजी के मुख पर श्रीराम का नाम रहा, तो उन्होंने आदर्श भारतीय समाज को रामराज्य में देखा। यह विडंबना ही है कि स्वतंत्रता के बाद जीवन के अंतिम क्षणों में राम का नाम (हे राम) लेने वाले बापू की दिल्ली स्थित राजघाट समाधि तो बीसियों एकड़ में फैली है, किंतु 5 अगस्त 2020 से पहले स्वयं रामलला अपने जन्मस्थल पर अस्थायी तिरपाल और तंबू में विराजमान रहे। यही नहीं, 2007 में स्वघोषित गांधीवादियों ने अदालत में श्रीराम को काल्पनिक बता दिया। यह विडंबना ही है कि जहां देश का एक वर्ग (वामपंथी-जिहादी कुनबा सहित) भारतीय संस्कृति और उसके प्रतीकों से घृणा करता है, वही ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो ने भारत द्वारा भेजी स्वदेशी कोविड वैक्सीन पर "संजीवनी बूटी ले जाते भगवान हनुमान" की तस्वीर ट्वीट करते हुए धन्यवाद किया है। बोल्सोनारो का यह संकेत भारतीय सांस्कृतिक प्रतीकों की वैश्विक स्वीकार्यता को रेखांकित करता है।
Punjab Kesari 2021-01-06

हम में से कुछ को अपनी पहचान से घृणा क्यों?

गत बुधवार (30 दिसंबर) को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बहुसंख्यक मुसलमानों की भीड़ ने अल्पसंख्यक हिंदुओं के एक प्राचीन मंदिर को ध्वस्त करके जला दिया। इस प्रकार के जमींदोज का यह भारतीय उपमहाद्वीप में कोई पहला मामला नहीं था और यह आखिरी बार था- ऐसा भी कहा नहीं जा सकता। विश्व के इस भूखंड में देवालय विध्वंस की परंपरा सन् 712 में मो.बिन कासिम के सिंध पर आक्रमण के साथ शुरू हुई थी- जो गजनी, गौरी, खिलजी, बाबर, औरंगजेब और टीपू सुल्तान जैसे क्रूर इस्लामी आक्रांताओं के कालखंड से आजतक अविरत जारी है। जब पाकिस्तान के खैबर में जिहादियों द्वारा प्राचीन हिंदू मंदिर को तोड़ा जा रहा था, तब लगभग उसी समय में भारत के आंध्रप्रदेश में कई हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां को खंडित कर दिया गया। पहले विजयनगर में भगवान राम की 400 वर्ष पुरानी मूर्ति क्षत-विक्षत किया गया, फिर राजमुंद्री में भगवान सुब्रमण्येश्वर स्वामी और विजयवाड़ा में देवी सीता की प्रतिमाएं क्षतिग्रस्त मिली। अब खैबर पख्तूनख्वा और आंध्रप्रदेश की घटनाओं में अंतर केवल इतना था कि पाकिस्तान में यह सब घोषणा करके खुलेआम हुआ, तो यहां चोरी-छिपे या रात के अंधेरे में किया गया। यह अकाट्य है कि इन दोनों घटनाओं को मूर्त रूप में देने वाली मानसिकता एक ही है। यदि 1947 के बाद पाकिस्तान का हिंदू, बौद्ध, जैन मंदिरों और प्रतिमाओं के विध्वंस का रिकॉर्ड है, तो खंडित भारत में "काफिर-कुफ्र" दर्शन से प्रेरित मजहबी हिंसा का लंबा इतिहास है। वर्ष 1989-91 के बीच जब कश्मीर जिहादी तूफान की चपेट में था, जिसमें दर्जनों हिंदुओं की हत्या और उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार के बाद पांच लाख कश्मीर पंडित पलायन हेतु विवश हुए थे- तब उसी विषाक्त वातावरण में कई ऐतिहासिक मंदिरों को या तो बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया था या फिर पूर्ण रूप से खंडित। 2012 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कश्मीर के 208 मंदिर जिहाद का शिकार हुए थे।
Punjab Kesari 2020-12-30

वर्ष 2020 के संदेश और सबक

वर्ष 2020 अपने अंतिम पड़ाव पर है। पाठकों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। यह साल कई घटनाओं का साक्षी रहा और भारत सहित शेष विश्व के लिए कई महत्वपूर्ण संदेश व सबक छोड़ गया। जहां कोविड-19 संक्रमण ने प्रकृति के सामने मनुष्य की औकात बता दी, तो वही उदारवादी लोकतांत्रिक देश, फ्रांस- ने इस्लाम के कट्टर स्वरूप से निपटने हेतु एक "प्रायोगिक योजना" दुनिया के सामने रखने का साहस किया है। बात यदि भारत की करें, तो यहां 2019 में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को मिले व्यापक जनादेश को निरस्त करने का प्रयास हो रहा है। इसका प्रमाण वर्ष 2020 के प्रारंभ में नागरिक संशोधन अधिनियम (सी.ए.ए.) विरोधी शाहीन बाग प्रदर्शन और हिंसा में दिखा, तो अब इसका दूसरा संस्करण हम किसान आंदोलन के रूप में देख रहे है। पड़ोसी देशों की बात करें, तो नेपाल आतंरिक संकट से जूझ रहा है। वहां साम्यवादी चीन का हस्तक्षेप कितना है- वह तब स्पष्ट रूप से सामने आ गया, जब नेपाली राजनीतिक समस्या का हल निकालने चीनी दूत एकाएक काठमांडू पहुंच गए। चीन का ही अन्य "सैटेलाइट स्टेट" पाकिस्तान हर वर्ष की तरह इस साल भी अपने वैचारिक चरित्र के अनुरूप भारत-हिंदू विरोधी षड़यंत्र में व्यस्त रहा। इसी साल चीन को यह भी सबक मिल गया कि एशिया में उसका सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी भारत 1962 की दब्बू पृष्ठभूमि से बाहर आ चुका है। वही अमेरिका, ट्रंप शासन से मुक्त होकर बिडेन के नेतृत्व में क्या रूख अपनाएगा, यह देखना शेष है।
Punjab Kesari 2020-12-23

क्रिसमस पर आत्मचिंतन

कोविड-19 के वैश्विक प्रकोप के साए में विश्व (भारत सहित) आज- 25 दिसंबर को क्रिसमस मना रहा है। इस त्योहार के साथ नववर्ष की उल्टी गिनती भी शुरू हो जाती है। सभी पाठकों को इसकी ढेरों शुभकामनाएं। आप सभी कोरोना-मुक्त नए साल में सकुशल, सहर्ष और स्वस्थ प्रवेश करें- ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है। यूं तो क्रिसमस का संबंध ईसा मसीह की जयंती से है, किंतु इसे अब दुनिया में मनाया जाता है। भारत में ईसाइयों की संख्या देश की कुल आबादी का केवल 2.3 प्रतिशत हैं, तब भी क्रिसमस पर सार्वजनिक अवकाश होता है। किंतु 25 दिसबंर को ही ईसा मसीह का जन्म हुआ था, इसका कोई प्रमाणिक रूप से ऐतिहासिक या वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह तिथि कल्पना पर आधारित है। पवित्रग्रंथ बाइबल में वर्णित गोस्पल कथाओं के अनुसार- बैथलहम में "दिव्य-हस्तक्षेप" के बाद कुंवारी मैरी ने यीशु को जन्म दिया था, वह भी बिना किसी पुरुष संपर्क के। इन कथाओं में भी 25 दिसंबर का उल्लेख नहीं है।
Punjab Kesari 2020-12-16

"गोदी मीडिया"- कटु सत्य

भारत के सार्वजनिक विमर्श में इन दिनों "गोदी मीडिया" जुमला बहुत प्रचलित है और दुर्भाग्य से इसका अस्तित्व एक कड़वा सच भी है। चाहे "गोदी मीडिया" संज्ञा का चलन अभी शुरू हुआ हो, किंतु यह पिछले 73 वर्षों से घुन की तरह भारतीय लोकतंत्र को खा रहा है। "गोदी मीडिया" के जन्म और इसके बढ़ते प्रभाव का एक लंबा इतिहास है। पं.नेहरू का सेकुलरवाद, वामपंथी विचारधारा का अधिनायकवाद और जिहादी मानसिकता- यह तीनों अलग-अलग होते हुए भी एक बड़ी सीमा तक एक-दूसरे का पर्याय है। जब वामपंथ के सहयोग से जिहादी पाकिस्तान का जन्म हुआ, तब पं.नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने पार्टी में उन नेताओं (मुस्लिम सहित) को शामिल करके "सेकुलर" घोषित कर दिया, जो स्वतंत्रता से पहले पाकिस्तान के लिए आंदोलित थे। विडंबना देखिए कि जो कलतक इस्लामी पाकिस्तान के पैरोकार थे, वे "सेकुलर" हो गए और अखंड भारत के पक्षधर "सांप्रदायिक"। खेद है कि यह परंपरा आज भी जारी है। उसी विरोधाभास के गर्भ से एक विशेष मीडिया संस्कृति ने जन्म लिया, जिसका विचार-वित्तपोषण तथाकथित "सेकुलर" सत्ता प्रतिष्ठान की "गोदी" में हुआ। कालांतर में इसी "गोदी मीडिया" ने सच्चे राष्ट्रवादियों, प्रतिकूल विचारधारा रखने वालों और सनातन भारत पर गौरवान्वित लोगों को लांछित करने हेतु सफेद झूठ, विकृत तथ्यों और अभद्र भाषा का उपयोग धड़ल्ले से किया। वास्तव में, "गोदी मीडिया" को इसका प्रशिक्षण उन देशों में मिला था, जहां वे सरकारी खर्चें पर "स्वतंत्र पत्रकारिता" का पाठ सीखने सोवियत संघ और पूर्वी यूरोपीय देशों का दौरा करते थे।
Punjab Kesari 2020-12-09

क्या दक्षिण की राजनीति बदलेगी?

क्या अब दक्षिण भारत की राजनीति में परिवर्तन आएगा? अभी तक कर्नाटक को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी की आंधप्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु में उपस्थिति अभी बहुत सीमित है। यहां तक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी इस चार प्रदेशों की भाजपा ईकाई में जान नहीं फूंक पाई है। किंतु क्या अब इसमें परिवर्तन होगा? हाल ही में ग्रेटर हैदराबाद नगर निकाय चुनाव के नतीजे आए, जिसमें भाजपा 4 से सीधा 48 सीटों पर पहुंच गई। वर्ष 2016 के चुनाव में जहां उसे 10.34 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे, वह इस वर्ष बढ़कर 35.5 प्रतिशत पर पहुंच गया। इससे पहले तेलगांना विधानसभा की एक सीट पर हुए उप-चुनाव में भी भाजपा 38.5 प्रतिशत मतों के साथ विजयी हुई थी। ऐसा क्या हुआ है कि दक्षिण भारत में भाजपा एक विकल्प बन रही है? इस प्रश्न का उत्तर- कांग्रेस के वैचारिक स्खलन और उसके संकुचित होते राजनीतिक आधार में छिपा है। स्वतंत्रता के समय तक कांग्रेस का वैचारिक अधिष्ठान सरदार पटेल के राष्ट्रवाद और गांधीजी के सनातन विचारों से ओतप्रोत था। किंतु इन दोनों जननेताओं के निधन पश्चात कांग्रेस पर "समाजवादी" पं.नेहरू का प्रभाव बढ़ गया। परिणामस्वरूप, कालांतर में पं.नेहरू की सुपुत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा 1969-70 में वामपंथी चिंतन को आत्मसात करने के बाद कांग्रेस का शेष राष्ट्रवादी और सनातनी दृष्टिकोण विकृत हो गया।

Previous1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253545556575859606162636465666768697071727374Next